Thursday 26 November 2015

मैं, अजमेर...6
                           कुकुरमुत्तों की तरह पनपते धार्मिक स्थल

      आज मैं अपनी भूमि पर कुकुरमुत्तों की भॉंति पनपते धार्मिक स्थलों की बात करूंगा। विषय बहुतों को चुभता सा लगेगा, किंतु यह सच्चाई है। धार्मिक आस्था के नाम पर बहुतों ने मेरी सरकारी भूमि पर मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल बना लिऐ है, जो कि कदाचित उचित नहीं है।
                अतिक्रमण की यह समस्या सिर्फ मेरी नहीं, अपितु गली, गांव, शहर और महानगर तक पूरे देश में है। किंतु इससे निजात पाने के लिए ना कभी सरकार सख्त हुई और ना कभी जनता इतनी जागरूक।
                ऐसे स्थलों की शुरूआत देखता हूं तो दंग रह जाता हूं ये सदैव मेरी सरकारी भूमि पर एक सोची समझी चाल के तहत पनपते है। आरम्भ में सिंदूर लगा पत्थर, फूल, धूप अगरबत्ती जैसी आस्था की चीजें लगाई जाती है, और धीरे-धीरे इसका विस्तार किया जाता है। खास अवसरों पर छोटे-मोटे आयोजन किऐ जाते और फिर एक दिन मूर्ति स्थापित हो जाती है। कहीं भगवा रंग चढ़ जाता है तो कहीं हरा रंग पुत जाता है। और जनता बेचारी भोले-भाले मन से भेड़ चाल की तरह उसमें शामिल हो जाती है। ऐसी ही कुछ प्रक्रिया मुस्लिम सम्प्रदाय के मजारों के पनपने की है। किंतु प्रशासन और यहॉं तक की मीडिया भी सदा चुप्पी साधे क्यूं अनदेखा करता है, कुछ समझ नहीं आता!
                सिविल लाइन क्षेत्र के एक आस्था स्थल की बात करूं तो आश्चर्य होता है। सुना है कि एक बार एक अंग्रेज अफसर का कुत्ता मर गया। उस समय यह क्षेत्र जंगल जैसा था, सो दफ्तर के पास ही उसको दफना कर एक चबूतरा बना दिया गया। कालांतर में यह मजार कहलाने लगी। फिर एक फकीर उस मजार की सेवा करने लगा और धीरे-धीरे स्थल ने अपनी जगह बना ली।
                ऐसे ही जयपुर रोड़ पर एक जगह सड़क के बीचोंबीच चलते ट्रेफिक के समय शाम को फूल चढ़ा कर अगरबत्ती की जाती है। विषय आस्था का है, सो सब चुप्पी साधे देखते रहते है और सिलसिला चलता रह रहा है। 
                यह तो अतिक्रमण करने के किस्सों का जिक्र भर है। वैसे आप इन किस्सा से ज्यादा वाकिफ होंगे। मौटे तौर पर देखता हूं तो पाता हूं कि ऐसे स्थलों के पनपने का मकसद धार्मिक कम और अतिक्रमण करना ज्यादा रहा है। आजकल तो यह भी देखा है कि यदि किसी जगह लोग पेशाब करते है तो उसे रोकने के लिए भी वहॉं पर भगवान की टाईलें लगा दी जाती है। कहने का भाव है कि आस्था के स्थल को लोग सिर्फ अपने मतलब से इस्तेमाल कर रहे है।
                सरकारी दफ्तरों के हालात तो और भी बुरे है। अधिकांश दफ्तरों में ऐसे आस्था स्थलो ने जगह बना ली है। दोषी को ढूंढे तो हमाम में सभी नंगे नजर आते है। मैं पूछता हूं क्या दफ्तर में सरकारी ड्यूटी के लिए जाते है या फिर पूजा पाठ के लिए? इस प्रश्न का किसी के पास कोई जवाब नहीं। बहुतों को देखता हूं कि सरकारी समय में पूजा-पाठ करते है। मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग शुक्रवार को ऑफिस के वक्त नमाज पढ़ने जाते है। क्या यह सब जायज है। कतई नहीं। अरे! यदि भगवान की भक्ति करनी ही है तो उसे अपने खुद के समय से समय निकालना चाहिऐ। छुट्टी लेकर पूजा-पाठ करनी चाहिऐ। पर...कौन करें! सब ईजी-वे में लेते है। सब चल रहा है। संबंधित कार्यालय का अफ्सर भी चुप्पी साधे भीगी बिल्ली की तरह बैठा रहता है। आखिर.. बुराई कौन मौल ले?
                सरकार को चाहिऐ कि दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करें। सरकारी भूमि पर बने अवैध स्थलों को तुरन्त कार्यवाही कर जड़ से हटा दें। अपनी हद से बाहर निकले स्थलों को भी सीमित करें। दोषियों के खिलाफ दण्डात्मक कदम उठाऐं, ताकि ऐसे लोग हतोत्साहित होवे। यह काम मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा है, किंतु एक बार सख्त होना ही होगा... बिल्ली के गले में घंटी बांधनी ही होगी..... जनता को सरकार का सख्त रवैया बताना ही होगा, अन्यथा सरकारी जमीं पर जैसे कब्जा होता आया है होने दो।
                वैसे प्रशासन अपने आप में पूर्ण सक्षम है। कानून की हर शक्ति है उनके पास। पर, कमी अखरती है तो सिर्फ उनकी इच्छा शक्ति की। साहस की। एक पहल की। हॉं, जब तब प्रशासन की नींद उड़ती है, तो कार्यवाही करता भी है, पर राजनीति और रसूखदारों के आगे फिर सांप सूंघ जाता है... और कार्यवाही पर लीपापोती हो जाती है। 
                धार्मिक स्थल के मामले में न्यायालय के हाल ही के एक निर्णय ने प्रशासन को और मजबूत किया है। तथ्यों के अनुसार भगवती प्रसाद देसवाल की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी एवं न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने जयपुर में 28 अप्रेल, 2015 को एक अतंरिम आदेश में कहा है कि धार्मिक स्थल आऐ तो हटा दो, सड़क मत मोड़ो। मैं ऐसे बेबाक निर्णयों का तहे दिल स्वागत करता हूं... ऐसे न्यायाधीशों को शतशत नमन करता हूं, जिन्होंने निष्पक्ष होकर देशहित और मानव कल्याण के लिए फैसला सुनाया।  
                अगर अतिक्रमण और तथाकथित धार्मिक आडम्बरों में सुधार आता है तो ना सिर्फ मेरी बल्कि पूरे देश की बहुत सी समस्याऐं हल हो जाऐगी। मेरे सड़कें आसानी से चौड़ी हो जाऐगी। सीधी हो जाऐगी। लोगों को सुविधाऐं होंगी और मैं स्वंय भी सुंदर लगने लगूंगा, जो निश्चय ही आपको सुकून देगा। इसके अलावा लोग सरकारी वक्त में सिर्फ सरकारी कामकाजों पर ध्यान देंगे तो सभी लोगों का काम भी समय पर निपट सकेगा।
                मुझे उम्मीद है कि प्रशासन की नींद उड़ेगी। वो सख्त होगा। और ठोस कार्यवाही करेगा। जरूरत पड़ी तो प्रशासन अतिक्रमियों को अहसास भी कहराऐगा कि कानून के हाथ कितने लम्बे होते है। प्रशासन कार्यवाही करे इससे पहले मैं स्वयं यहॉं के पूजारियों और खादिमों से प्रार्थना करना चाहूंगा, ताकि मेरी सरजमीं पर सद्भाव और शांति के साथ विकास की गंगा बहती रहे...... अतः मेरी प्रार्थना इस प्रकार है -

प्रार्थना

हे पूजारी! हे खादिम!
मेरी प्रार्थना है कि-
अपने मंदिर-मस्जिद को
सड़क से थोड़ा दूर कर ले,
इस शहर के विकास को
कुछ राह मिल जाऐगी।

हे पूजारी! हे खादिम!
अपने आस्था स्थल को
थोड़ा छोटा और व्यवस्थित कर ले,
जीते-जागते इंसानों को
कुछ सुविधा मिल जाऐगी।

हे पूजारी! हे खादिम!
ये प्रार्थना इस शहर के
हर बाशिंदे की है ...
तू इसे दिल से कबूल कर ले,
हर एक की राह
आसान हो जाऐगी।

हे पूजारी! हे खादिम!
तेरे इस छोटे से करम से
बहुतों का उदार हो जाऐगा,
अपना यहअजमेरशहर
एकस्मार्ट सिटीबन जाऐगा।।
(अनिल कुमार जैन)
अपना घर’, 30-,
सर्वोदय कॉलोनी, पुलिस लाइन,
अजमेर (राज.) - 305001  
                                                                                Mobile                - 09829215242

aniljaincbse@gmail.com

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