मैं, अजमेर ... 14
पुष्कर मेला
- जहॉं बिखरते है
राजस्थानी लोक संस्कृति
के अनूठे रंग
मेरा जिक्र
‘पुष्कर’ के
बिना अधूरा
है। जी
हॉं, पुष्कर
है ही
कुछ खास।
यह वही
धरती है,
जहॉं से
इस सृष्टि
की शुरूआत
होती है।
यह वही
पुष्कर जहॉं
सृष्टि की
रचना के
लिए प्रजापिता
ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था।
यह वहीं
पुष्कर जिसकी
उत्पत्ती ब्रह्माजी
के हाथ
से गिर
पुष्प से
हुई। अर्थात्,
ऐसे पूजनीय,
वंदनीय, तीर्थो
के तीर्थ
के बिना
मैं कैसे
पूर्ण हो
सकता?
यह नाग
पहाड़ से
गुजरती सर्पीली
घाटी के
पार करीब
14 किमी की
दूरी पर
है। आध्यात्मिक
शांति के
ओत-प्रोत
इस धरा
पर एक
ओर रेतीली
मिट्टी का
रोमांच है
तो दूसरी
ओर पवित्र
पुष्कर झील
का किनारा
है। एक
ओर घंटे,
शंख व
मंत्रोच्चारण की अनुगूंज है तो
दूसरी ओर
धार्मिक रस्मों
का रैला
भी है।
एक ओर
राजस्थानी संस्कृति की उभरती झांकी
है तो
दूसरी ओर
विदेशी सैलानियों
की पाश्चात्य
संस्कृति का
पुट भी
है। एक
ओर आध्यात्मिक
सरिता के
साथ मंदिरों
की भरमार
है तो
दूसरी ओर
लजीज मालपुऐ,
गुलकंद जैसे
व्यंजनों की
बहार भी
है।
कहते है
पुष्कर की
उत्पति ब्रह्माजी
के हाथ
(कर) से
गिरे पुष्प
से हुई।
इसीलिए इसे
पुष्कर (पुष्प+कर) कहा
जाता है।
वैसे सरोवर
का एक
अर्थ पुष्कर
भी होता
है। बीस
वार्डो में
बंटा पुष्कर
करीब 4-5 किमी
के दायरे
में सिमटा
है। वर्ष
2011 की जनगणना
के अनुसार
यहॉं की
जनसंख्या मात्र
21626 है। इस छोटी-सी नगरी
में 400 से
भी अधिक
मंदिर है।
हिंदूओं के
लिए यह
तीर्थों का
‘तीर्थराज’ है। यहॉं बस स्टेण्ड
गुरूद्वारे से ब्रह्मा मंदिर तक
मुख्य बाजार
है। इसी
के किनारे
पवित्र पुष्कर
सरोवर व
घाट है।
विदेशी सैलानियो
को तो
पुष्कर इतना
रास आता
है कि
वे यहॉं
कई हफ्ते
रूक जाते
है।
पद्म पुराण
में इसकी
महत्ता का
दिग्दर्शन कराते हुये लिखा है-
‘पर्वतानां यथा मेरूः, पक्षिणाम् गरूड
यथाः, समस्त
तीर्थाणाम् आदि पुष्कर मिस्यते।‘ अर्थात्
जिस प्रकार
पर्वतों में
सुमेरूपर्वत, पक्षियों में गरूड़ का
महत्व है,
उसी प्रकार
समस्त तीर्थो
में आदि
पुष्कर महत्वपूर्ण
है। कहते
है - ‘कार्तिक
पुष्करे स्नातः
समस्त पापैः
प्रभुण्यते’ अर्थात यहॉं कार्तिक स्नान
से समस्त
पाप कट
जाते है।
जैन मतानुसार
प्राचीन समय
में यह
नगरी ‘पद्मावती‘
व कोंकण
तीर्थ के
नाम से
भी जानी
जाती थी।
अदृश्य नदी
सरस्वती का
उद्गम स्थल
भी इसी
नगरी को
माना जाता
है। सिखों
के गुरू
नानक देव
सन् 1511 में
तथा गुरू
गोविंद सिंहजी
वर्ष 1705 में पुष्कर की यात्रा
कर चुके
है।
पुष्कर का
पुरातात्विक महत्व भी है। इसके
पास बैजनाथ,
पंचकुंड, कान्ह
बाय, ककड़ेश्वर-मकड़ेश्वर महादेव,
भर्तृहरि, अगस्तेय मुनि की गुफा,
नांद, देवनगर,
तिलोरा आदि
प्राचीन धार्मिक
स्थल है,
जहॉं आज
भी कई
अवशेष दबे
पड़े है।
गायत्री महामंत्र
की रचना
भी पुष्कर
की ही
मानी जाती
है। ईस्वी
सन् 736 में
यहॉं जैनाचार्य
श्री हेमराज
जी के
आने का
जिक्र भी
है। आचार्यश्री
यहॉं 7 दिनों
तक रूके
थे। श्वेताम्बर
समाज के
संत श्री
जिनपति सूरी
ने भी
पुष्कर की
सन् 1168, 1188 एवं 1192 में यात्रा कर
चुके है।
ऋषि विश्वामित्र
का मेनका
से मिलन
भी इसी
धरा पर
हुआ। पद्म
पुराण के
अनुसार कार्तिक
मेले के
5 दिनों में
यहॉं सभी
33 करोड़ देवी
देवता प्रवास
करते है।
लोक भजन
की पंक्तियॉं
याद आती
है - गंगाजी
न्हाया, जमनाजी
न्हाया, पोखर
की पेड्या
मं काया
सुधरी ओ
राम! कहते
है कि
यहॉं डूबकी
लगाने से
पापों का
नाश होता
है। इसी
धारणा से
लोग यहॉं
खींचे चले
आते है।
अर्थात् पुष्कर
की महिमा
अपरम्पार है।
अवर्णनीय है।
अपने वैभव
पूर्ण धार्मिक
अतीत के
कारण पहले
यह तीर्थ
यात्रा के
लिए प्रसिद्ध
था, किंतु
बदलते परिवेश
में यह
यात्रा के
साथ साथ
पर्यटन व
घूमने-फिरने
के लिए
भी एक
प्रमुख केन्द्र
के रूप
में उभरा
है। 52 घाटों
से सजा
पवित्र सरोवर
यहॉं का
खास आकर्षण
है। ब्रह्मा
मंदिर, रंगनाथ
वेणुगोपालजी का मंदिर, रमा बैकुण्ड
(नये रंगजी)
मंदिर, वराह
मंदिर, गुरूद्वारा,
सावित्री माता
का मंदिर,
रेतीले धोरे,
केमल सफारी,
कालबेलिया नृत्य, कार्तिक पुष्कर मेला
आदि दर्शनीय
है। पुष्कर
के आकर्षणों
में अब
यहॉं का
रौप-वे
यानी उड़न
खटोले से
सावित्री मंदिर
की सैर
भी जुड़
रहा है।
यानी कुल
मिलाकर पुष्कर
दर्शनीय भी
है और
वंदनीय भी
है और
घूमने के
लिहाज से
भी उत्तम
है।
पुष्कर
मेले का स्वरूप
पुष्कर मेले
को अन्तर्राष्ट्रीय
ख्याति प्राप्त
है। गुलाबी
ठंडक के
साथ ही
इसका आगाज
होता है।
अब तक
पुष्कर मेले
की अवधि
कार्तिक शुक्ला
अष्ठमी से
मगसर कृष्ण
द्वितीया यानी
10 रोज थी।
किंतु इस
बार पुष्कर
विधायक सुरेश
सिंह रावत
व अन्यों
के प्रयासों
से मेला
अवधि में
वृद्धि की
है। अब
यह कार्तिक
शुक्ला एकम
तिथि से
मगसर कृष्णा
द्वितीया तक
रहेगा। इसमें
एकम से
दशमी तक
पशु मेला
रहेगा। एकादशी
से पूर्णिमा
तक धार्मिक
मेला रहेगा।
अर्थात् वर्ष
2015 में मेला
अवधि 12 नवम्बर
से 27 नवम्बर
तक रहेगी।
इसके लिए
सरकार ने
गजट नोटिफिकेशन
जारी कर
‘द राजस्थान
स्टेट केटल
फेयर एक्ट,
1963’ में संशोधन किया है। यह
नोटिफिकेशन थोड़ा और जल्द होता
तो शायद
ज्यादा फायदा
होता। पर्यटकों
की बुकिंग
उसी हिसाब
से होती।
खैर, कार्तिक पूर्णिमा को
महास्नान रहेगा।
यूं तो
पुष्कर मेला
प्राचीन काल
से लगता
आया है।
हॉं, स्वरूप
जरूर बदलता
रहा है।
कभी लोक
संस्कृति का
मेला, कभी
पशु मेला
तो कभी
धार्मिक पंचतीर्थी
स्नान मेले
के रूप
में लगता
रहा है।
उपलब्ध प्रमाण
बताते है
कि मुगल
बादशाह जहॉंगीर
के समय
यानि सन्
1615 में कार्तिक
पशु मेले
की एक
व्यवस्थित शुरूआत हुई। इसमें घोड़ों
की बिक्री
सर्वाधिक रही।
इसके बाद
मेला लगातार
विख्यात होता
रहा। सन्
1651 से 1818 तक युद्धों व राजनीतिक
उथलपुथल के
कारण मेला
औपचारिक रहा।
अंग्रेजी राज
में यह
फिर व्यवस्थित
हुआ और
सांस्कृतिक आयोजन होने लगे। अजमेर
के सुपरिन्टेंडेंट
रहे लेफ्टिनेंट
कर्नल मैकनॉटन
ने सन्
1840 में अजमेर-पुष्कर के
बीच घाटी
काट कर
कच्ची सड़क
का निर्माण
करवाया। सन्
1911 में क्वीन
मैरी ने
यहॉं जनाना
घाट का
निर्माण करवाया।
आजादी के
बाद जिला
बोर्ड अजमेर
द्वारा मेला
भराया गया।
राजस्थान राज्य
पशु मेला
अधिनियम आने
के बाद
से इसका
आयोजन
पशु पालन विभाग कर रहा
है। सन्
1972 के आस-पास से
राज्य सरकार
का सहयोग
बढ़ा। सन्
1977 से यह
मेला विश्व
के पर्यटन
मानचित्र पर
उभरा। अब
यह एक
अर्न्राष्ट्रीय मेले के रूप में
स्थापित हो
चुका है।
भारतीय डाक
विभाग ने
इस प्रसिद्ध
मेले पर
27 फरवरी, 2007 को स्मृति डाक टिकट
जारी किऐं
है।
यहॉं के
मेले में
सबसे ज्यादा
ऊॅट बिकने
आते है।
इसके अलावा
घोड़े, बैल
आदि भी
बिकाउ रहते
है। वर्ष
2004 में 23489 पशु आऐ। 2005 में यह
संख्या 23515 रही। 2006 में 23850 थी। वर्ष
2007 में यह
संख्या घटकर
मात्र 19681 ही रह गई। सन्
2008 में पशुओं
की आवक
17649 रही। वर्ष 2009 में 19204, वर्ष 2010 में
18582, वर्ष 2011 में 17604 व
वर्ष 2012 में 15519 रही। वर्ष 2013 में
यहॉं 11150 पशु आऐ तथा करीब
8 करोड़ रूपये
की खरीद-फरोख्त हुई।
सन् 2014 में
पशुओं की
संख्या 9934 थी। मेले में आऐ
पशुओं की
आवक के
आंकड़े बताते
है कि
पशुओं की
संख्या में
भारी गिरावट
आई है,
जो कि
चिंता का
विषय है।
ऊॅंटों की
आवक में
भी भारी
गिरावट आई
है। अब
ऊॅंट को
राज्य पशु
घोषित किया
है, किंतु
अब भी
कुछ कारगर
कदम उठाने
होंगे, अन्यथा
पशुओं का
यह विशाल
मेला इतिहास
की बात
बन जाऐगा।
मेले में
लोक संस्कृति
के रंग
भी दर्शनीय
होती है।
इस अवसर
पर विदेशी
सैलानियों के लिए ठेठ ग्रामीण
संस्कृति के
ओत-प्रोत
एक ‘पर्यटन
ग्राम‘ बसाया
जाता है,
जो कि
सभी आधुनिक
सुख-सुविधाओं
से सुसज्जित
होता है।
पूरी नगरी
एक हैरिटेज
तीर्थ की
भॉंति नजर
आती है।
इस बार
3 दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय
भक्ति उत्सव
भी आयोजित
हो रहा
है, जिसमें
कैलाश खैर,
विश्व मोहन
भट्ट, प्रेम
जोशवा समेत
कई ख्याति
प्राप्त कलाकार
शिकरत करेंगे।
मेले की
रौनक दीपावली
पूर्व से
ही रेतीले
दड़ों पर
बिखरने लगी
है। इस
बार इवेंट
मैनेजमेंट की एजेंसी - ई-फेक्टर
एंटरटेनमेंट कम्पनी एवं टीम वर्क्स
ने इसे
और आकर्षक
बनाने के
प्रयास किऐ
है। इसी
कड़ी में
डेजर्ट बाइक,
स्ट्रॉर्म बाइक, पैरा ग्लाइडिंग, फॉक्स
फ्लाइंग, हॉट
एयर बैलून
सफारी, नाइट
ग्लो बैलून
जैसे ऐडवेंचर
के साथ
साथ ‘पुष्कर
ऑन व्हील’
भी जोड़ा
है। निश्चय
ही यह
मेलार्थियों को नये अंदाज के
ऐडवेंचर कराएगी।
इन सब
के लिए
करीब सवा
दो करोड़
रूपये का
बजट है।
कार्यक्रम को नया व भव्य
बनाने के
लिए पर्यटन
विभाग पहले
भी इवेंट
मैनेजमेंट एजेन्सी की सेवाऐं वर्ष
2007 में ले
चुका है।
दीपावली और
मेले के
मध्यनजर इस
बार नगर
पालिका की
ओर से
पहली बार
यहॉं फरियॉं
व लाईटें
लगा कर
सजावट भी
की गई।
कहना चाहूंगा
कि आरम्भ
से यहॉं
का खास
आकर्षण यहॉं
के रेतीले
धोरों में
राजस्थानी संस्कृति की झलक रहती
थी। पहले
लोग पैदल
चल कर
पुष्कर मेले
में पहुंचते
थे, किंतु
बीते सालों
में इसमें
काफी बदलाव
आया है।
स्वरूप ग्रामीण
न रह
कर नगरीय
और शहरी
हो चला
है। आधुनिक
उपकरणों व
सुख सुविधाओं
ने पुराना
परिवेश बदल
दिया है।
रेतीले धोरों
पर भी
अब पक्के
निर्माण नजर
आने लगे
है। पगड़ी-साफे जैसे
परम्परागत पैहराहन वाले लागों में
कमी आई
है। ग्रामीण
बालाओं के
सजने संवरने
से लेकर
उनके अल्हड़पन
भरे अंदाज
आदि में
भी बदलाव
आया है।
धर्मशालाऐं होटलों में तब्दील हो
गई है।
धार्मिक माहौल
की जगह
अब पाश्चात्य
व नशीला माहौल नजर आने लगा है।
सांस्कृतिक मूल्यों में भी गिरावट
आई है।
कह सकता
हूं कि
पहले सब
सहज-सरल
था, नेचूरल
था, अपनत्व
लिऐ था,
मिट्टी से
जुड़ा था,
पर अब
सब बनावटी,
दिखावटी और
क्षणिक हॅसने
हॅंसाने वाला
हो गया
है। निजी
हाथों में
इसके आयोजन
को सौंपकर
अब इसका
और व्यावसायिकीकरण
किया जा
रहा है।
निश्चय ही
आने वाले
समय में
मेले के
स्वरूप में
और बदलाव आऐंगे तथा भावनात्मक जुड़ाव
में कमी
आऐगी।
पहले देश-विदेश के
लोग यहॉं
की संस्कृति
से खिंचे
चले आते
थे, पर
आज इन्हें
आकर्षित करने
के लिए
तरह तरह
से प्रचार-प्रसार किया
जा रहा
है। वर्ष
2004 में यहॉं
देशी पर्यटकों
की संख्या
10,65,703 थी जबकि विदेशी सैलानियों की
संख्या 43,980 थी। वर्ष 2009 में देशी
पर्यटकों की
17,45,040 थी जबकि विदेशी सैलानियों की
सख्ंया 77,678 रही। वर्ष 2014 में यह
संख्या क्रमशः
32,34,750 एवं 70,603 रही। मेले
के दौरान
देशी पर्यटकों
की आवक
करीब 3-4 लाख
के करीब
रहती है,
वहीं विदेशी
सैलानियों की आवक 6 से 8 हजार
के आस-पास रहती
है। वर्ष
2010 में विदेशी
सैलानी 3382, वर्ष 2011 में 4800, वर्ष 2013 में
6000 एव वर्ष
2014 में 6250 ने मेले में शिरकत
की। ऑंकड़े
बताते है
कि जनसंख्या
वृद्धि, प्रचार
प्रसार और
घूमने ट्रेंड
को देखते हुऐ अजमेर - पुष्कर में
आने वाले
पर्यटकों के
आने का
प्रतिशत घटा
है। पुष्कर
में इस
बार अगस्त
2015 तक विदेशी
सैलानियों की आवक मात्र 37,164 है,
जो कि
सैलानियों के पुष्कर के प्रति
घटते रूझान
को इंगित
करता है।
पुष्कर में
आने वाले
देशी पर्यटकों
के आने
का कारण
धार्मिक ज्यादा
और घूमना
कम रहता
है। जबकि
विदेशी सैलानियों
के आने
का कारण
यहॉं की
आध्यात्मिक शांति और राजस्थानी ग्रामीण
संस्कृति रहता
है, किंतु
अब शांति
और संस्कृति
से आऐ
बदलाव से
विदेशी सैलानियों
का भी
मोह भंग
हुआ है।
पुष्कर को
मेरे साथ
अब पर्यटन
मंत्रालय की
प्रसाद योजना
(तीर्थस्थल कायाकल्प और आध्यात्मिक वृद्धि
कार्यक्रम राष्ट्रीय मिशन) शामिल किया
है। इसके
लिए करीब
35 करोड़ रूपये
स्वीकृत हुऐ
है, जिनमें
से नवम्बर,
2015 में 8 करोड़ की पहली किश्त
केन्द्र सरकार
ने राज्य
सरकार को
आंवटित कर
दी है।
इससे सरोवर,
घाट, बाजार,
ब्रह्मा मंदिर,
परिक्रमा पथ
व सावित्री
माता मंदिर
के जीर्णोद्वार
व विकास
के कार्य
होंगे। हृदय
योजना के
अंतर्गत हैरिटेज
सिटी के
लिए भी
अजमेर व
पुष्कर हेतु
60 करोड़ 98 लाख रूपये स्वीकृत हुऐ
है। इसके
अंतर्गत 8 करोड़ 72 लाख रूपये ब्रह्मा
मंदिर व
उसके आस-पास के
क्षेत्र को
हैरिटेज के
रूप में
विकसित करने
में खर्च
होगा। जुलाई,
2015 में पुष्कर
मंदिरों के
लिए मास्टर
प्लान बनाने
के लिए
34 लाख रूपये
की स्वीकृति
राज्य सरकार
ने दी
है। इसके
अलावा स्मार्ट
सिटी और
टेम्पल टाउन
के रूप
में भी
इसे विकसित
करने की
योजनाऐं भी
है। यदि
इस छोटी
सी नगरी
को ‘टेम्पल
टाउन’ और
‘हैरिटेज सिटी’
के रूप
में आगे
बढ़ाया जाऐ
तो यह
एक शानदार
नगरी होगी।
मूल चीजें
यहॉं पहले
से ही
उपलब्ध है,
बस जरूरत
है उसे
एक सही
दिशा और
गति देने
की। व्यवस्थित
रखने की।
साइकिल सिटी
के लिए
भी यहॉं
अच्छा स्कोप
है। अतः
इसे एक
साइकिल सिटी
के रूप
में भी
विकसित किया
जा सकता
है। हॉं,
पर विकास
और आधुनिकता
की डगर
पर चलते
इस शहर
के मूल
स्वरूप व
पहचान को
बचाऐ रखना
होगा।
खैर, फिलहाल
मेरे पुष्कर
मेले की
रंगत अपने
शबाब पर
है। दड़ों
पर नाच,
गाने, नोटंकी,
सर्कस, तमाशा
की धूम
है। मेला
ग्राउंड में
सास्कृतिक आयोजन हो रहे है
तो रेतीले
धोरों पर
दूर दूर
आसमान तले
ग्रामीण अपने
आशीयाने ताने
है। एक
अनूठा - सहज,
सरल, सौम्य
दृश्य है।
समय के
साथ बदलाव
का दौर
रहा है,
पर जो
भी है,
बदलते परिवेश
में भी
मेरा पुष्कर
सुंदर है।
एक अद्भुत
शांति लिए
है, जिसे
यहॉं कुछ
दिन रहकर
ही महसूस
किया जा
सकता है।
(अनिल
कुमार जैन)
‘अपना
घर’, 30-अ,
सर्वोदय
कॉलोनी, पुलिस
लाइन,
अजमेर
(राज.) - 305001
Mobile -
09829215242
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