Saturday 12 August 2023

फॉय सागर हुआ - बरसों बाद लबालब

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फॉय सागर हुआ - बरसों बाद लबालब

शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर बनी यह कृत्रिम झील मेरे बाशिंदों का सबसे करीबी व पसंदीदा पिकनिक स्थल है। 18-19 जून को आऐ बिपरजॉय चक्रवाती तूफान व मानसून की अच्छी बारिश के बाद रविवार 9 जुलाई, 2023 की रात को एक लम्बे अरसे बाद फॉय सागर की चादर चल पड़ी। लोगों के लिए यह कौतूहल और चर्चा का विषय रहा। 10 जुलाई को यहॉं देखने वालों का तांता-सा लग गया, किंतु पाल व बगीचे की ओर जाना प्रतिबंधित था। पुलिस तैनात थी, क्योंकि पाल का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त था तथा चादर भी बहुत तेजी से चल रही थी। खैर लोगों ने पास ही बने साईकिल स्टैण्ड की ओर से इसको देखने का लुत्फ उठाया। सोशल मीडिया पर फोटो, वीडियो व रील की बाढ-सी़ आ गई। कुछ ने तो ड्रोन से भी फोटोग्राफी की। अजमेर एसपी चूनाराम जाट ने भी अन्य अधिकारियों के साथ यहॉं का जायजा लिया। 

बरसों बाद चली यह चादर आगे तीन दिनों तक चलती रही। इन तीन दिनों में करीब 375 क्यूसेक (33 एमसीएफटी) पानी निकला। पहले कब चली इस पर लोगों की अलग-अलग राय थी। कुछ ने वर्ष 1994 बताया तो कुछ ने 1998 व 1975 बताया। खैर वर्ष 1975 की सभी ने तस्दीक की। बनने के बाद इसकी पहली बार चादर वर्ष 1908 में चली। यहॉं झील के दोनों किनारों - काजीपुरा व हाथीखेड़ा की ओर पाल पर चादर बनी है। यहॉं की चादर का पानी आनासागर में आता है। इसीलिए आनासागर को भी इसी हिसाब से खाली किया जाता रहा है, ताकि निचली बस्तियॉं जलमग्न होने से बच सके। इस मानसून की बारिश में अब तक यह तीन बार (17 जुलाई व 27 जुलाई) को आवरफ्लो हो चुका है।  

वैसे इसका निर्माण अकाल राहत कार्य के दौरान हुआ। लंबे समय तक यह शहरवासियों की प्यास बुझाता रहा है। रिकॉर्ड के मुताबिक इसका निर्माण अजमेर म्यूनिसिपल्टी द्वारा 1891-92 (संवत 1949) में हुआ। यह कार्य इंजीनियर फॉय की देखरेख में हुआ, इसीलिए इसका नाम ‘फॉय सागर’ पड़ा। यहॉं लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण करीब एक लाख रूपये में हुआ। वैसे मेडिको टोपोग्राफीकल अकाउंट ऑफ अजमेर के अनुसार इसको बनाने व जमीन के मुआवजे समेत करीब 1,07,000 रूपये लागत रही। पानी सप्लाई के लिए पाईपलाइन जिसे अकाल (1891-92) के दौरान बूढ़ा पुष्कर से अजमेर तक काम में ली गई, उसे ही काम में लिया गया, जिसकी लागत करीब 92000 दर्शायी है। दीवान हरबिलास शारदा की पुस्तक - "अजमेरः हिस्टोरिकल एण्ड डिस्क्रप्टिव" के अनुसार इसकी लागत 2,68,900 रूपये रही। 

बताते हैं कि यह झील बोराज, काजीपुरा और हाथीखेड़ा गावों की करीब 693 बीघा 20 बिस्वा जमीन पर है, जो कि सार्वजनिक निर्माण विभाग और नगर निगम अजमेर के खाते में दर्ज है। इसमें खरेखड़ी व अजयसर गांवों के पास सटी पहाड़ियों का पानी जमा होता है। झील की गहराई 26 फीट तथा फैलाव 14 मिलियन स्कवायर फीट है। इसमें 150 मिलीयन क्यूबिक फीट पानी समा सकता है। यह बांड़ी नदी के कैचमेंट क्षेत्र में बनी है। इसका कैचमेंट क्षेत्र करीब 8 स्कवॉयर मील है। यहॉं तत्कालीन समय में छोटे-छोटे दो फिल्टर प्लांट थे। झील के भरने पर इससे शहर को 2 वर्ष तक पानी सप्लाई की जा सकती थी। यह शहर के लेवल से कुछ उॅंचाई पर होने की वजह से यहॉं से पाइप में पानी बड़ा तेजी से आता था। 

बरसात के दिनों में यहॉं की प्राकृतिक छठा और निखर उठती है। चारों ओर हरियाली लिए पहाड़ियॉं, पानी, लोगों की चहल-पहल और प्राकृतिक सुंदरता होती है। इसके बीच झुंड में पिकनिक मनाने वालों का तांता लगा रहता है। अस्सी-नब्बे के दशक में यहॉं पर साइकिलों व सिटी बसों से जाने वालों की भी अच्छी खासी भीड़ रहती थी। तब यहॉं पेड़ों के नीचे कहीं खाना बन रहा होता था तो कहीं डेक पर बजते गानों पर लोग थिरक रहे होते थे। शोरगुल व बारिश की बौछारों में यहॉं का नजारा चहक उठता था। कह सकते हैं कि पिकनिक वालों की धूम रहती थी। रविवार या छुट्टी के दिन की तो बात ही न पूछो। किंतु अब यहॉं का नजारा बदल गया है। इस बार चादर चलने से लोगों को बहुत खुशी हुई, किंतु तब निराशा हाथ लगी, जब उन्हें यहॉं भीतर जाने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से मना किया गया या फिर प्रवेश पर शुल्क लगाया गया या फिर गोठ वालों को अपना टिफिन भीतर नहीं ले जाने दिया। जबकि पहले यहॉं कुछ मनाही नहीं थी। टिफिन बनाकर ले जाने वालों की संख्या भी सबसे अधिक हुआ करती थी।  

इसके किनारे टींडशैड की कुछ छतरियॉं व बगीचे में चादर के निकट एक शिव मंदिर बना है। शिव मंदिर का निर्माण विभाग के कर्मचारियों द्वारा 1961 ई. (संवत् 2017) में करवाया। बगीचे का नाम परिषद के पूर्व सभापति वीर कुमार के नाम पर ‘वीर पार्क’ रखा गया है। यहॉं लगे शिलालेख के अनुसार इसका लोकार्पण नगर परिषद के सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत के समय श्रावण कृष्ण पक्ष अष्ठमी संवत 2057 (जुलाई, 2000) में हुआ। उद्घाटनकर्ता तत्कालीन अजमेर सांसद रासासिंह जी रावत थे। बगीचे में प्रवेश से कुछ ही आगे एक पिलरनुमा स्ट्रक्चर पर शिवजी की छोटी मूर्ति स्थापित है, जहॉं झरने की व्यवस्था की गई है।  

शहर की जनता को होने वाली जलापूर्ति की शुद्वता की जांच के लिए वर्ष 1970 में फॉयसागर रोड़ पर जल प्रयोगशाला की स्थापना भी की गई थी, जहॉं पर नियुक्त सहायक और टेक्नीशियन सरकारी नल और हैंडपंप के पानी के नमूने की जॉंच करते थे। 

बीते सालों में आनासागर व उदयपुर की फतेहसागर झील की तर्ज पर इसके किनारे पर भी चौपाटी/पाथ-वे, हैरिटेज लाईटें व बगीचे आदि पर काफी काम हुआ। 8 ओरनामेंटल छतरियॉं बनाई गई। फूड कोर्ट भी बनाया गया। एडीए ने इस पर करीब 3.18 करोड़ रूपये खर्च किये। इस कायाकल्प के बाद जुलाई, 2022 में इसे आमजन के लिए खोल दिया गया था। सिंधि समाज की भारतीय सिंधु सभा ने इस झील का नाम ‘वरूण सागर’ करने की मांग रखी थी, जिसका प्रस्ताव नगर निगम की साधारण सभा में पार्षद ज्ञान सारस्वत ने रखा, जो कि पास भी हो गया तथा आगे की कार्यवाही के लिए पत्र संभागीय आयुक्त को भेज दिया गया। लेख है कि 'चालिहो महोत्सव' पर सिंधी समाज पवित्र नदी अथवा झील के किनारे वरूण देवता की पूजा करके दीपदान करते हैं। बीते कुछ सालों से सिंधी समाज इस झील के किनारे यह पूजा करता आ रहा था, इसकी मांग की जा रही थी। 

नाम बदलने के बारे में मनोनीत पार्षद व कवि लोकेश चारण ने इसका नाम ‘मॉं गीगल सागर’ रखने की मांग की। उनका कहना है कि नामकरण इतिहास से जुड़े तथ्यों के आधार पर गीगल सागर उपयुक्त है। क्योंकि औरंगजेब के समय गोमाता की अनन्य भक्त रही गीगाई माता ने बारूद को पानी में बदल दिया था। अतः इस आधार पर गीगल सागर किया जाना उपयुक्त है। 

फॉय सागर रोड़ पर अन्य पिकनिक स्थल भी हैं। इस रोड़ पर दाहिनी तरफ बोराज पहाड़ी पर धरातल से करीब 400 मीटर की ऊॅंचाई चामुंडा माता का मंदिर है। यह भी घूमने की अच्छी जगह है। यहॉं चौहानों की कुलदेवी का मंदिर है। फॉय सागर से करीब आठ किमी की दूरी पर दक्षिण में मेरे संस्थापक अजयपाल चौहान के नाम पर अजयसर गॉंव बसा है। यह भी एक नैसर्गिक पिकनिक स्थल है। यहॉं अजगंधेश्वर नाम से शिव मंदिर, रूठी रानी (अर्द्ध नारीश्वर) मंदिर, कुंड व अजयपाल का सिद्ध स्थान है। प्रकृति की वादियों में यह भी दर्शनीय स्थल है। 

आनासागर व फॉयसागर के बीच फैले विशाल क्षेत्र पर नगर सुधार न्यास 70 के दशक में अभ्यारण बनाना चाहता था तथा इस हेतु प्रस्ताव भी पास किया बताते हैं, लेकिन बाद में नीति नियंताओं ने इस पर सीमेंट-कंक्रीट का अभ्यारण बना दिया यानी कॉलोनिया बसा दी। अति वर्षा से इस बार लोगों को बहुत परेशानी हुई। बांडी नदी के आस-पास की कॉलोनियॉं, घर व हाथीखेड़ा के आस-पास के क्षेत्र जलमग्न हो गऐ थे। डिफेंस कॉलोनी में भी पानी भर गया। चादर का पानी बांडी नदी के जरिये आनासागर में आया तो शहर के कई इलाकों की स्थिति भयावह हो गई। पानी निकाले तो अजमेर दक्षिणी क्षेत्र की बस्तियॉं डूबी और न निकाले तो उत्तरी क्षेत्र की बस्तियों में पानी। खैर यह परेशानी तो होनी ही थी, क्योंकि तालाबों की हदों में बस्तियॉं जो बसा दी गई .... अतिक्रमण जो हो गऐ.... समय रहते कदम जो नहीं उठाऐ। खैर क्या कहूॅं ... कुछ रोते रहेंगे... कुछ हॅंसते रहेंगे... जिंदगी है हर हाल में लोग बसर करते रहेंगे। गिले शिकवों का तो अंबार है यहॉं ... पहाड़ भी इनके आगे तो बौने लगेंगे। 

फॉय सागर कुल मिलाकर मेरे यहॉं का एक खूबसूरत पिकनिक स्थल है। लोगों के दिलों में रचा-बसा है, किंतु जरूरत है इसकी रौनक इसे फिर से लौटाने की, जिसके लिए यहॉं तक की सड़क सुधारनी होगी। पार्किंग व्यवस्था सही करनी होगी। टिफिन गौठ के लिए रोक-टोक हटानी होगी। चादर के पानी का सदुपयोग करना होगा। खूबसूरती बढ़ानी होगी। सुख-सुविधाऐं व साफ-सफाई आदि भी अनवरत करनी होगी। बोटिंग की व्यवस्था भी की जा सकती है।  अगर ऐसे छोटे-मोटे सुधार भी कर दियें जावें तो मेरी यह झील एक बार फिर ... मेरे बाशिंदों के दिलों को छू सकेगी .... सुकूॅं के पल दे सकेगी।


-अनिल कुमार जैन

‘अपना घर’, 30-अ, 

सर्वोदय कॉलोनी, पुलिस लाइन, 

अजमेर (राज.) - 305006

09829215242

anil_art4u@yahoo.com