Wednesday 18 November 2015

मैं, अजमेर ...13

साइकिल सिटी में है - राहत की राहें

      अरावली पहाडिय़ों से घिरा एक छोटा सा शहर। गिनती की सडक़ें। सीमा में बंधी सडक़ों की चौड़ाई। और इन पर खिसकता वाहनों का रैला और बढ़ती भीड़ का दबाव। जी हां, ऐसा ही कुछ नजारा है, मेरी सडक़ों का।
      सडक़ों पर बढ़ते दबाव के कारण ही स्टेशन के तोपदड़ा-पालबिचला की तरफ एक और द्वार तथा ऐलिवेटेड रोड के बारे में सोचा जा रहा है। इसी सोच की कड़ी में उभर कर आया है - ‘साइकिल सिटीके रूप में विस्तार! सुझाव बुरा नहीं है। इस पर अमल हो जाए तो प्रदूषण, पार्किंग, पर्यावरण, यातायात दबाव, स्वास्थ्य जैसी अनेक समस्याओं से निजात मिलेगी।
      साइकिल सिटी के लिए जब तब चर्चाऐं हुई हैं । सडक़ सुरक्षा सप्ताह में भी इस बात पर बल दिया जाता रहा है, किंतु अब तक तो यह सब थोथी बातें ही साबित हुई हैं।  

      उर्जा, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संरक्षण को लेकर अजयमेरु प्रेस क्लब ने भी 28 अगस्त, 2015 को मेरे यहां एक विशाल साइकिल रैली का आयोजन किया। इसे शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी एवं महिला बाल विकास मंत्री अनिता भदेल ने पटेल मैदान से रवाना किया। रैली में भीड़ अच्छी जुटी और अच्छे से सम्पन्न भी हुई। संकल्प भी दिलाऐ गऐ, किंतु लोगों ने इसे कितना अपनाया इसका जवाब आज भी शून्य ही है। यहां तक की आयोजक स्वयं भी अपनी साइकिलों से दूर हैं। बड़े-बड़े ओहदेदारों ने भी इसमें हिस्सा लिया। साइकिलिंग की। फोटो खिंचवाई। किंतु यह सब सिम्बोलिक ही रहा। अत: क्लब के अध्यक्ष डा. रमेश अग्रवाल एवं उनकी टीम को इस बारे में पुन: सोचना चाहिए तथा अपने अभियान को एक मुकाम तक पहुंचाना चाहिए।
      डॉक्टर बताते हैं कि साइकिलिंग निरोगी रखने में सहायक होती है। इसके अलावा हैल्थ संतुलित रहती है। मधुमेह, हृदयरोग, वजन नियंत्रित रखने प्रदुषण से होने वाली व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है। मांसपेशियों को ताकत मिलती है। यदि साइकिल से चलेंगे तो लोगों से मिलना जुलना भी बढ़ेगा। यह तथ्य सब सच्चे है लोग इनसे वाकिफ भी हैं। यह भी मानते हैं किसाइकिल की सवारी सब पर भारीपर, असल जिंदगी में साइकिल से दूर हो चले हैं।
      असल में साइकिल 19वीं शताब्दी में यूरोप से आई। आजादी के बाद भी इसका बहुत बोलबाला था। सन् 1990 तक यह यातायात का प्रमुख हिस्सा थी, किंतु सन् 1990 के करीब आए उदारीकरण और आर्थिक बदलावों के चलते यह हाशिये पर चली गई तथा इसके स्थान पर मोटर साइकिलें गई।
      अगर मेरे यहां साइकिलों का वह पुराना जमाना लौट आता है तो मेरे गर्भ में पल रहे हैरिटेज स्मार्ट सिटी के सपने को भी पंख लग जाऐंगे। साइकिलों से मेरा पुराना नाता है। तभी तो मेरे यहां मृदंग सिनेमा के आगे मेयो कॉलेज के पास वाले चौराहे कोराजा साइकिल चैराहेके नाम से पुकारा जाता है। बताते है कि पहले यहां राजा साइकिल एण्ड मोटर गैराज प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक संस्थान था। इसकी स्थापना सन् 1912 में हुई। इसकी नींव एडवोकेट उमरावसिंहजी ब्रह्मवर ने रखी। ब्रहमवर जी के पुत्र अंबालाल जी ने अपने छोटे भाई राजनारायण (राजा) के नाम पर इस संस्थान को आरम्भ किया। पुराने दिनों को याद करते हैं तो अजमेर के कलेक्टर रहे डी सी जोसफ साहब एवं राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे यतीन्द्र सिंह भी साइकिल पर घूमा करते थे। मेरी माटी के सपूत आरपीएस राजेन्द्र त्यागी ने वर्ष 1984 में राष्ट्रीय साइकिलिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया था। यानी साइकिल से सजा मेरा एक सुनहरा अतीत रहा है, किंतु देखते ही देखते बीते 2-3 दशकों में सब बदल गया है।
      मेरे यहां यातायात के बढ़ते दबाव को आंकड़ों में देखें तो पाऐंगे कि शहर में करीब ढाई लाख दुपहिया वाहन, 30-35 हजार के करीब कारें-जीपें तथा ऑटो आदि हैं, जबकि सडक़ें और उनकी दूरियां सिर्फ नाम-मात्र की। इन पर ईंधन की खपत की बात करें तो यहां करीब 55 हजार लीटर पेट्रोल तथा 60 हजार लीटर डीजल की खपत रोजाना है। यानी 60-65 लाख रूपये का ईंधन। यदि मैं एक साइकिल सिटी के रूप में विकसित हो जाऊं तो मेरे शहर वासियों को इतने वाहनों के वायु-ध्वनि प्रदुषण, ट्रेफिक और ईंधन के व्यय में राहत मिल सकती है।
      फिलहाल देश मेंसाइकिल सिटीके रूप में विकसित करने के लिए कोई खास योजना नहीं है। अलबत्ता, अहमदाबाद, बैंगलुरू और गोवा की तर्ज पर राजस्थान  स्वायत्त शासन विभाग ने अजमेर पुष्कर सहित 10 शहरों में साइकिलों के जरिये टूरिज्म के लिए पहल की है। इसमें पयर्टकों को गियर्ड जीपीएस वाली साइकिलें किराये पर मुहैया करवाने की योजना है। यह एक अच्छा कदम है। पर, इस योजना को धरातल पर फलीभूत करना होगा। विजय दशमी यानी 22 अक्टूबर, 2015 को दिल्ली मेंकार फ्री डेमनाया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने साइकिल रैली का नेतृत्व किया। काश! रैली के बजाय ये लोग इस रोज अपना दैनिक काम काज साइकिल पर करते तो निश्चय ही उस दिन प्रदूषण और जाम से मुक्ति मिलती। जनता में भी अच्छा मैसेज जाता, पर यहां भी सिर्फ दिखावे की राजनीति ही हुई। फोटो सैशन और भाषण बाजी ही रही। 
      अजमेर के लिए भी फिलहाल सिर्फ बातें ही है। मास्टर प्लान में भी साइकिल सिटी अथवा साइकिलों को बढ़ावा देने के लिए कोई जिक्र नहीं है। खैर, जो भी हो मेरी दूरियां देखते हुए साइकिल सिटी के रूप में विकसित करना हर लिहाज से फायदेमंद है। यानी साइकिल सिटी में राहत ही राहत है और राहत की राहें हैं।  
      अब सवाल है कि मुझे एक साइकिल सिटी के रूप में कैसे विकसित किया जाऐ? इस पर सभी को गहन चिंतन कर ठोस कदम उठाने होंगे। लोगों को पहल करनी होगी। इसके लिए यहां दिऐ जा रहे सुझाव भी कारगर साबित हो सकते हैं -
- साइकिलें सस्ती दरों पर उपलब्ध कराके लोगों को इससे पुन: जोड़ा जा सकता है। यह सबसे कारगर उपाय लगता है। 
- हफ्ते में एक रोज या फिर हर दिन 2-4 काम साइकिल के जरिये ही निपटाऐं जाऐं। इसके लिए हर आदमी को प्रयास करने चाहिऐ।
- बड़े अफ्सरों पदाधिकारियों को हकीकत के धरातल पर साइकिलिंग की पहल करनी चाहिऐ।
- सैकण्डरी क्लासेज से बच्चों को स्कूल आने जाने के लिए साइकिल के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना होगा।
- पर्यटकों को सहजता से साइकिलें किराये पर उपलब्ध कराई जानी चाहिऐ। साइकिल सफारी को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए पर्यटन विभाग को जिम्मा दिया जा सकता है।
                 यदि मैंसाइकिल सिटीबन जाऊं तो मुझे उम्मीद है कि मैं फिर से इठलाता.... खिलखिलाता अजमेर हो जाऊंगा। मेरी आबोहवा में फिर से वो रौनक और रंगत लौट आएगी। खुलापन फिर से नजर आऐगा। मिलनसारिता बढ़ेगी। लोग सेहतमंद होगें और मैं भीड़भाड़ से मुक्त हो जाऊंगा।
-अनिल कुमार जैन
अपना घर’, 30-, सर्वोदय कॉलोनी, पुलिस लाइन,
अजमेर (राज.) - 305001  
मो. 09829215242


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