Saturday 18 November 2017

मैं, अजमेर ...! जब खिल उठी मेरी दीवारें ....

मैं, अजमेर ...!

जब खिल उठी मेरी दीवारें ....
    स्मार्ट सिटी की डगर पर अजमेर ने बीते दिनों एक और अभिनव पहल की। ‘रंग लहर’ के नाम से आरंभ किये गऐ इस कार्यक्रम में ना सिर्फ शहर की दीवारों को कलात्मक व आकर्षक बनाया गया, अपितु कलाकारों को प्रश्रय और संजीवनी भी दे दी। जी हां, 31 अगस्त और 1 सितम्बर, 2017 को नगर निगम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में सावित्री स्कूल की दीवारों पर कलात्मक ‘वाल पेंटिंग्स’ करवा के मुख्य सड़क को दर्शनीय बना दिया।
    ‘रंग लहर’ के इस प्रथम चरण में दीवार पर 50 से अधिक पेंटिग्स बनाई गई। पेंटिंग्स की मुख्य थीम थी - ‘शेड्स आफ वूमन’। थीम ने दीवारों को आकर्षक बनाने के साथ-साथ नऐ अर्थ भी दे दिऐ। दीवारें स्त्री मन की व्यथा-कथा और भावाभिव्यक्ति से लबरेज हो गई। पेंटिंग्स में नारी के उत्साह, उमंग, उल्लास, शक्ति, समर्पण, मातृत्व, मादकता, स्वछंदता, उन्मुक्तता, कला, सौंदर्य, संघर्ष, माधुर्यता, चंचलता, नारी वेदना जैसे विभिन्न स्वरूपों को बखूबी समेटा है।  



    लोक कला संस्थान के निदेशक एवं ‘रंग लहर’ कार्यक्रम संयोजक संजय सेठी बताते है कि इस प्रकार का ‘कला कुंभ’ शहर में पहली बार हुआ है, जो कि मील का पत्थर साबित होगा। इससे कलाकारों को तो मान मिला ही, शहर की दीवारें भी सुंदर होकर संदेश देने वाली बन गई है। वे बताते है कि इन पेंटिंग में फड़ पेंटिंग, वरली आर्ट, मधुबनी, मांडणा, स्प्रे पेंटिंग, कटेंम्परेरी आर्ट, माडर्न आर्ट, अफ्रीकन आर्ट, यामिनी राय मास्टर आर्ट, पिछवाई शैली, किशनगढ़ शैली की बणीठणी सहित विभिन्न शैलियों का उपयोग हुआ है, जिनमें कलाकारों ने महिलाओं की जिंदगी से जुड़े कई रूप दर्शाये है।
  शेड्स आफ वूमन
    दीवारों पर कहीं कृष्ण भक्ति में लीन मीरा की छवि तो कहीं कालीदास रचित अभिज्ञान शकुन्लम की घरेलू नारी दर्शायी गई। कहीं छत्रपति शिवाजी को वीरता का पाठ पढ़ाने वाली जीजा माता तो कहीं कवि घनानंद की श्रृंगारित सुजान नजर आई। कहीं यशोदा माॅं का वात्सल्य तो कहीं तुलसी को तुलसीदास बनाने वाली रत्नावली भी नजर आई। कहीं चटक रंगों में राजस्थान की अल्हड़ नवयौवना तो कहीं रेगिस्तानी जहाज पर ढोला मारू की प्रेम कहानी भी दर्शायी है। किशनगढ़ी शैली में तीखे नैन नक्श वाली बणीठणी को उकेरा है तो कहीं संघर्षमय जीवन में अपने कार्यो को निपटाती आज की नारी भी दर्शायी है।
    बीते समय की बात करें तो कहना होगा कि - वैदिक काल में नारी का उच्च स्थान था, किंतु मध्य काल में नारी के सम्मान में गिरावट आई। रीतिकाल में कलाकारों का केन्द्रीय विषयवस्तु नारी ही रही, जिसमें नारी (नायिका) को आलंबन बनाकर श्रंृगार के सभी अंगों पर काव्य-कला की गई। उसके नख-शिख और सौंदर्य का विवेचन हुआ। कवियों ने नारी को कभी काम की पाग, कहीं चपला, कहीं कृपाण तो कहीं चैपड़ जैसे रूपों में भी दर्शाया। राधाकृष्ण की ओट में भी कलाकारों ने श्रृंगार और प्रेमरस को रसिला बनाकर उतारा। वहीं भक्तिकाल नारी को मुक्ति मार्ग का बाधक माना गया। खैर, 19वीं शताब्दी से नारी के उत्थान की बात चली है, जो आज तक जारी है। इसी दिशा में ‘शेड्स आॅफ वूमन’ एक सुंदर कदम कहा जा सकता है। 
  कलाकार और कलाकारी -
    कलाकार अजय व देवेन्द्र खारोल ने अपनी पेंटिंग के माध्यम से यह कहने का प्रयास किया कि - ‘लड़की पढेगी, सात पीढ़ी तरेगी’ यानी एक लड़की पढ़ेगी तो सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाएगा। मेयो कालेज से सेवानिवृत कला अध्यापक अशोक हाजरा ने बंगाल शैली से प्रभावित कन्टेम्परेरी आर्ट को दर्शाया है। संस्कृति स्कूल ने मधुबनी पेंटिंग शैली में महिलाऐं, कृष्ण-गोपियों को दर्शाया तो नसीराबाद के राजेश बुंदेल ने अल्हड़ ग्रामीण बालाओं के चित्र से रंग रंगीलों राजस्थान दिखाने का प्रयास किया। दयानन्द कालेज ने नारी उन्मुक्तता को दर्शाया तो मेयो गल्र्स स्कूल एवं लोक कला संस्थान ने फड़ पेंटिंग में राजस्थान की शाही सवारी को दर्शाया। इसी प्रकार दयाराम और एमकेएच स्कूल ने पानी से झूझती ग्रामीण नारिया, शालिनी गोयल, हनी धवन व नव्या ने उगते सूरज के समक्ष तितलियों से खेलती नारी, आईएनआईएफडी ने वरली आर्ट की क्रियेटिव फार्म, क्वीन मैरी स्कूल ने मांडणों के साथ वरली आर्ट, कलाकार सचिन साखलकर ने राधाकृष्ण व मीरा, सावित्री स्कूल ने ढोला मारू व बणीठणी से नारी के रूप दर्शाये। प्रकाश नागौरा ने पिछवाई शैली में राष्ट्रीय पक्षी मोर व नारी, प्रजेष्ठता नागोरा ने ढपली के साथ अल्हड़ ग्रामीण बाला, डीपीएस ने फड़ पेंटिंग, विक्रम सिंह व राजेश कुमावत ने यामिनी राय मास्टर आर्ट, किरण कुमावत ने मानसून एवं मुकेश कुमावत ने नारी शिक्षा पर चित्रकारी की।
  सीधे हाथ की ओर भी करीब 26 चित्र बनाऐ गऐ। इनमें नेहा कनोजिया नेस्ट प्ले स्कूल ने नारी शिक्षा, मेयो कालेज आर्ट टीचर आलोक शर्मा ने संगीत में नारी एवं बच्चों ने हर मोर्चे पर सक्रिय नारी दर्शाया। डिजाईन डिकाले कालेज ने यामिनी राय शैली पर पेंटिंग, माई वल्र्ड कलाकार गौरव जाला ने स्प्रे पेंटिंग के जरिये मातृत्व का भाव उकेरा। यह सबसे जुदा तकनीकी पर आधारित पेंटिंग रही। इसके आगे मोनिका नितिन ने नारी के तीन छवियां, सेंट स्टीफन के बच्चन सिंह ने स्त्री पुरूष, एमपीएस ने घुंघट में नारी, बालाजी टैटूज ने योगमय नारी व अफ्रीकन आर्ट, शैफाली ने परदे में नारी, सोफिया स्कूल ने बालिका शिक्षा, मयूर स्कूल ने रंग रंगीलों राजस्थान व पुष्कर मेला, ब्लासम स्कूल ने गुगल आधुनिक चित्र शैली, सविता, भव्य व अनन्या ने स्मार्ट सिटी, आॅल सेंट्स के बनवारी लाल ओझा ने तारागढ़ की तलहटी से गुजरती महिलाऐं, आकाश कुमार ने सांस्कृतिक भारत, आर्यन कालेज ने आधुनिक शैली में नारी के रूप, आर्यन पब्लिक स्कूल ने नारी के विशेषताऐं, काजल राजौरिया ने मातृत्व, गरीमा राकेश ने नारी उन्मुक्त, मेशू जिया आदि ने अफ्रीकन आर्ट, अंकित गुप्ता ने प्राकृतिक चित्रण, माई वल्र्ड ने स्वतंत्र उन्मुक्त नारी, शारूख अली ने क्रियेटिव, प्रकाश नागोरा ने बणीठणी, आल सेंट्स के बनवारी लाल ने मार्डन आर्ट के जरिये नारी के विभिन्न रूप दर्शाये।
  प्रशासनिक प्रोत्साहन
    नगर निगम आयुक्त हिमांशु उपायुक्त ज्योति ककवानी ने कहा कि इन वाल पेंटिंग्स से शहर तो आकर्षक बनेगा ही, किंतु शहरवासियों में अपने शहर के प्रति जुड़ाव भी पैदा होगा। महापौर धर्मेन्द्र गहलोत ने कहा कि इससे हमारी संस्कृति और कला को प्रोत्साहन और संरक्षण मिलेगा .... कलाकारों का भी उत्साहवर्धन होगा.... नारी सम्मान के प्रति जागृति आऐगी। इन पेंटिंग्स को देखकर कलक्टर गौरव गोयल भी तारिफ करे बिना नहीं रह सके। उन्होंने कहा कि हर पेंटिंग की अपनी एक भाषा है.... एक अंदाज है... एक कहानी लिए है.... निश्चय ही यह एक अभिभूत करने वाला कदम है। वे भी अपने आप को नहीं रोक सके और उन्होंने अपने मोबाइल से इन पेंटिंग्स की फोटोग्राफी की। नगर निगम कमिश्नर हिमांशु गुप्ता ने भी इस अभियान की तारीफ की और कहा कि शिघ्र ही इसका द्वितीय चरण आरम्भ होगा।  
  नारी और नारी मन को अभिव्यक्ति देती ये दीवारें अब मेरी दर्शनीय धरोहर सी बन गई है। इसे देखकर हर किसी के कदम यहां ठिठक रहे है। कोई ‘वाह’ बोलता है तो कोई यहां फोटो खिंचवा रहा है। कहना होगा कि कला अभिव्यक्ति की यह मुहिम एक सुकून देने वाली साबित हुई है। नगर निगम ने भी दिल खोलकर कलाकारों को वो सम्मान दिया जिसके वे हकदार थे। निगम ने इन सभी कलाकारों को 7 सितम्बर, को विजय लक्ष्मी पार्क में आयोजित एक समारोह में उन्हीं की पेंटिंग्स के चित्र फ्रेम में जड़वाकर सम्मानित किया। इन पेंटिंग्स पर फोटो जर्नलिस्ट दीपक शर्मा ने एक लघु फिल्म भी बनाई, जिसे इस अवसर पर प्रदर्शित किया गया। निश्चय ही यह सभी कलाकारों के लिए एक बड़ा सम्मान और प्रोत्साहन रहा। कार्यक्रम के सहयोगी दीपक शर्मा, संजय सेठी, अनिल कुमार जैन, राजेश कश्यप, साहित्यकार डा. पूनम पांडे आदि को भी निगम ने सम्मानित कर इस प्रकार के आयोजन को अनवरत जारी रखने का आग्रह किया।
  मुंडोती में भी दीवारें हुई कलात्मक -
    इसी की तर्ज पर अब किशनगढ़ के निकट मुंडोती गांव में भी 9 सितम्बर, 2017 को ‘सृजन’ के तहत वाल पेंटिंग्स की गई। उल्लेखनीय है कि यह गांव केंद्र सरकार के उन्नत भारत अभियान के तहत आदर्श गांव बनाया जा रहा है। इसमें प्रशिक्षु आईएएस टीना डाबी के नेतृत्व में यूनाइटेड अजमेर, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, दयानंद कालेज, सोफिया कालेज, आर. के. राजकीय महाविद्यालय किशनगढ़, सेन्ट्रल अकेडमी सहित कई कलाकार सहयोग कर रहे है। यहां तक की विदेशी कलाकार भी इसमें शामिल है। 
रंग मल्हार से हुआ था रंगों का आगाज -
    रंग लहर से पूर्व पृथ्वीराज फाउंडेशन ने निगम के सहयोग से सूचना केन्द्र में साइकिल के 200 वर्ष पूर्ण होने पर 9 जुलाई, 2017 को ‘रंग मल्हार’ का आयोजन किया, जिसके माध्यम से स्मार्ट सिटी, ग्रीन सिटी और प्रदुषण मुक्त अजमेर जैसे संदेश दिऐ गऐ। इसमें में भी रंगों के माध्यम से सभी कलाकारों ने अपने भावों को साइकिलों पर उतारकर कलात्मक अभिव्यक्ति दी। इसमें करीब 60 साइकिलों को सजाया गया। उल्लेखनीय है कि यह साइकिलें अब शहर के विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शित की जाऐगी।
    मेरी धरा पर कलाकारों को संरक्षण और प्रोत्साहन का जो यह अभियान चला है, निश्चय ही सभी के लिए हितकारी और लीक से हटकर कुछ सुकून देने वाला है। चित्रकारी कैनवास से निकल कर दीवारों पर आम लोगों के लिए पहुंची है तो कलाकार भी अपने घर से निकल कर शहर के सरोकारों से जुड़ा है। उम्मीद है यह सफर अभी बहुत आगे तक जाऐगा। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ। 

(अनिल कुमार जैन)
‘अपना घर’, 30-अ,
सर्वोदय कालोनी, पुलिस लाइन
अजमेर - 305001
फोन - 9829215242

      

मैं अजमेर .....अद्भुत मेरा रेल म्यूजियम!

मैं अजमेर

अद्भुत मेरा रेल म्यूजियम!

      चौक गऐ ना! जी हा चौकने वाली ही बात है। मैं जिक्र कर रहा हू मेरे एक ऐसे म्यूजियम की जिसकी कल्पना ही अद्भुत है। असल में यह वाल पेंटिग्स है जिसमें अजमेर रेलवे के विकास और रेलवे से जुड़े विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हुऐ करीब 39 वाल पेंटिग्स बनाई है और इसे नाम दिया है रेल म्यूजियम आन वाल। है ना एक नया अद्भुत क्रिएटिव आइडिया!
     इस रेल म्यूजियम की कल्पना को साकार किया अजमेर रेलवे प्रबंधक पुनित चावला ने। आपकी पहल से इसे डीआरएम आफिस के निकट जीएलओ ग्राउंड (जनरल लाइज्निंग आफिस की दीवारों पर बनाया गया है। इसका श्रीगणेश 24 अक्टूबर 2017 को रेल प्रबंधक स्वयं पुनित चावला ने किया। 2 दिन तक चली इस वाल पेंटिग्स के लिए रेल प्रशासन ने सभी कलाकारों को वाल पैनल तैयार करके आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई। इस अद्भुत आयोजन में रेलवे की सहयोगी संस्था रही यूनाईटेड अजमेर।
   जीएलओ ग्राउंड की दीवार पर कुल 39 पेंटिग्स बनाई गई जिनके माध्यम से रेल के इतिहास एवं अजमेर रेलवे के विकास को दर्शाया गया। अजमेर में रेलवे का आगमन सन् 1876 में हुआ जब ब्यावर के लिए यहा से पहली रेल चली। सन् 1889 में यह राजपूताना-मालवा रेलवे का हिस्सा बनी। सन् 1896 में यह मेवाड़ स्टेट रेलवे फिर सन् 1951 में वेस्टर्न रेलवे और फिर सन् 2002 में यह नोर्थ वेस्टर्न रेलवे का हिस्सा बना। इसके अलावा भी समय समय पर रेलवे में कई परिवर्तन हुऐ। इन्हीं को समेटने का यहा एक अच्छा प्रयास हुआ है।
   पहली पेंटिंग में अजमेर जंक्शन का पीले रंग का बोर्ड है, जो हकीकत में स्टेशन का आभास कराती है। इस पर अजमेर जंक्शन की समुद्र तल से अधिकतम ऊॅंचाई 481-88 मीटर दर्शायी है। दूसरी पेंटिग में डीआरएम आफिस की भव्य इमारत है। इसकी नीवं सन् 1884 में रखी गई। तत्कालीन समय में यह मारवाड़ राजपूताना के लिए जनरल लाइज्निंग आफिस के रूप में स्थापित हुआ था किंतु अब डिविजनल रेलवे मैनेजर (डीआरएम आफिस के नाम से जाना जाता है। इमारत की भव्यता विशालता देखते ही बनती है। निओ-गौथिक शैली में बनी इस इमारत में पत्थरों को कैंचीनूमा फंसाकर बनाया गया है। तीसरी पेंटिग में अजमेर स्टेशन का  बाहरी दृश्य है। स्टेशन की भव्यता देखते ही बनती है। इस स्टेशन की शुरूआत सन् 1876 में हुई तथा शैनेः शैने इसके आकार और रूप में विस्तार होता गया। चैथी पेंटिग में लोको अजमेर कारखाना स्थित घंटाघर (क्लाक टावर है जिसमें सन् 1876 अंकित है, जो कि इसकी स्थापना का वर्ष दर्शाता है। इसे स्टीफन स्कूल के कलाकारों ने बनाया। 

   पाचवीं पेंटिग में सन् 1878 में बने स्टीम लोकोमोटिव का चित्र है। यह इंजन सन् 1885 तक राजपूताना रेलवे के लिए और फिर सन् 1952 तक यह जोधपुर राज्य में संचालित रहा। छठे चित्र में शंटिंग लोकोमोटिव को दर्शाया है जो कि भारत का पहला आयातित इंजन था। यह सन् 1873 का निर्मित है जिसका उपयोग अजमेर कारखाने में भी किया गया। सातवें चित्र में मीटर गेज लोको वाईजी 3572 को दर्शाया है जिसका निर्माण चितरंजन लोको में हुआ। यह सन् 1972 तक कार्य में रहा। इसके बाद फैयरी क्वीन इंजन का चित्र है। नाम के अनुरूप यह सुंदर और सबसे पुराना भाप इंजन है। इसका निर्माण सन् 1855 में हुआ। यह आज भी दिल्ली अलवर के बीच संचालित है। इस पेंटिंग को दीक्षिता शाक्या ने बनाया।  
नवीं पेंटिंग में भाप इंजन है जिसके पाश्र्व में खूबसूरत ताज को दर्शाया है। इस पेंटिंग को द्वितीय स्थान से नवाजा गया। दसवीं पेंटिंग में सन् 1873 निर्मित 54 बी क्लास 10-4-4 टी भाप इंजन है। ग्यारवीं पेंटिंग में मीटर गेज स्टीम इंजन है जो नीलगिरी पहाड़ियों में छुक छुक सीटी बजाते हुऐ आगे बढ़ता है। सन् 1940 का बना यह इंजन आज भी अपनी सीटी की आवाज बुलंद किये है। यानी नील गिरी की पहाड़ियों में संचालित है। इसके आगे पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा सन् 1854 में उपयोग किया गया इंजन का दृश्य है। इसे आकाक्षा शर्मा ने बनाया।

   तेहरवीं पेंटिंग में भाप इंजन एम-1 क्लास] 4-4-0 डिजाइन जिसका निर्माण अजमेर लोको में सन् 1913 में हुआ को दर्शाया है। खेतों के बीच गुजरते धू घू का गुबार छोड़ते इस इंजन का चित्र हूबहू बन पड़ा है। इसको चित्रित किया है वंडर ब्रूश के कलाकार विक्रम सिंगोदिया मोनिका चैहान श्वेता शर्मा ने। इस पेंटिंग को प्रथम स्थान से नवाजा गया है। इसके बाद 1910 का भाप इंजन का चित्र है। यह इंजन कराची पोर्ट ट्रस्ट मराला टिम्बर डिपो ईस्ट पंजाब और फिर नोर्थ रेलवे में कार्यरत रहा। इस पेंटिंग को तृतीय स्थान मिला।
   15वीं पेंटिंग में टाय ट्रेन इंजन है। इस टाय ट्रेन की शुरूआत कांकरिया झील अहमदाबाद में सन् 2008 में हुई। इस पेंटिंग का आकांक्षा जैन, तनवी अग्रवाल एवं दामिनी जैन ने बनाया। इसके बाद डी1 क्लास 4-6-4 टी लोकोमोटिव है जिसका निर्माण सन् 1917 में अजमेर में हुआ। इसके बाद सन् 1920 के करीब काम में लिये जाने वाले 4 पहिये वाले कोच का दृश्य है। 18वीं पेंटिंग में वूडन कोच का दृश्य है जो कि आजादी के पूर्व पश्चिमी बंगाल में यूज किया जाता था। इसके बाद नैरो गेज के कोच की पेंटिंग है। यह कोच सेंट्रल रेलवे में काम आता रहा। इसे राजकीय कन्या महाविद्यालय अजमेर की छात्रा नेहा सोनी प्रिया लामा एवं ऐश्वर्या ने बनाया।
   इसके बाद दूंरतो एलएचबी (लिंक हाफमैन बुश कोच की पेंटिंग है। यह सन् 2009-10 में आरम्भ हुऐ जो कि हाई स्पीड ट्रेनों के लिए एक पहल थी। इसके बाद भी एलएचबी कोच की पेंटिंग है। 22वीं पेंटिंग में भाप इंजन है जो कि पहाड़ी वादियों से गुजरती दर्शायी है। 23वीं पेंटिंग में हिमालयन बर्ड नामक टाय ट्रेन को दर्शाया है। दो फीट की नैरो गेज की यह ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी एवं दार्जिलिंग के मध्य चलती है जो कि पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। 24वीं पेंटिंग में मुंबई-थाने के बीच बने पहले ब्रिज का चित्र है। इसका निर्माण सन् 1854 में हुआ।
   इसके बाद नीलगिरी रेलवे का चित्र है जो कि मेट्टूपलयम उदगमंडलम के बीच सन् 1908 में शुरू हुई। 26वीं पेंटिंग में डीजल मल्टिपल यूनिट (डीएमयू का चित्र है जो कि सन् 1990 के आसपास शुरू हुऐ। इसके बाद इलेक्ट्रिक लोको एवं 1940 के दशक में 3 कोच ईएमयू रैक का उपयोग दिखाया है। 29वीं पेंटिंग में अराधना फिल्म का दृश्य है। जिसमें पहली बार ट्रेन को ब्रिज पर चलते हुऐ दो बच्चों का कौतूहलवश देखना दर्शाया है। इसके बाद कालका-शिमला शिवालिका माउंटेन ट्रेन का दृश्य है। इसकी शुरूआत सन् 1898 में हुई जो कि आज भी पर्यटकों को आकर्षण है। इसे सेंट विलफ्रेड के छात्रों ने बनाया। इसके बाद डबल स्टेक कंटेनर टाल्गो ट्रेन बुलैट ट्रेन ग्रीन रेड लाईट सिग्नल के लिए यूज में ली जाने वाली चिराग सिग्नल सिस्टम ट्रेन की पटरियों का जाल लोको कारखाने में बनने वाले हथियार आदि की पेंटिग्स है। इसे बालाजी टैटू आर्ट ग्रुप के नितिन, के कृष्णा एवं भरत ने बनाया।  
   इन पेंटिग्स के जरिये कलाकारों ने रेलवे की कई महत्वपूर्ण जानकारियों पर प्रकाश डाला है। इसमें रेलवे के विकास के साथ साथ अजमेर की इमारतें इतिहास तथ्य रेलवे स्टेशन की भव्य इमारत, डीआएम कार्यालय, ब्रिज, सिग्नल, डिब्बे, ट्रेन, वर्कशाप आदि को बखूबी दर्शाया है जोकि एक सराहनीय कार्य है। कहीं इंजन की सिटी बजती दिख रही है तो कहीं इंजन का धुंआ उठ रहा है। कहीं पुल के ऊपर से ट्रेन गुजर रही है तो कहीं गुफा से निकलती ट्रेन दर्शायी है। कहीं घुमावदार कर्व से गुजरती ट्रेन दिखाई है तो कहीं ट्रेन का सफर करते यात्री भी दर्शाये है जिसे देखकर बरबस ही वाह! निकल पड़ता है।
   रेलवे ने इस कार्य में जुटे सभी कलाकारों को 14 नवम्बर 2017 को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया है। अभियान में सहयोगी रही कीर्ति पाठक के नेतृत्व में यूनाईटेड अजमेर की टीम भी बधाई की पात्र है। रेल विभाग ने इन पेंटिंग्स पर अब इपोक्सी कोटिंग करके इसके बाहर फैंसिंग की है ताकि यह लंबे समय तक सुरक्षित रह सके। लीक से हटकर यह सड़क किनारे रेल संग्रहालय वास्तव में अद्भुत दर्शनीय और जानकारियों से भरा है। इस सुंदर शुरूआत के लिए रेलवे और विशेष तौर पर डीआरएम पुनीत चांवला जी बधाई के पात्र है। उम्मीद है इसे वे और आगे तक ले जायेंगे और इस संग्रहालय को अच्छा आकार दे पाने में सफल होंगे। शुभकामनाओं के साथ,

अनिल कुमार जैन
अपना घर 30
सर्वोदय कालोनी पुलिस लाइन
अजमेर राज - 305001

                     फोन 09829215242