मैं, अजमेर ...16
मेरी रेल कहानी
भारत में
रेल्वे की शुरूआत
सन् 1853 में हुई।
मेरे अजमेर में
रेल्वे की असल
कहानी 1 अगस्त, 1875 से शुरू
होती है, जब
यहॉं आगरा रेल
लाइन का आगमन
हुआ। इसी के
साथ मेरे यहॉं
विकास की बयार
भी बही। राजपूताना
स्टेट रेल्वे की
पटरियॉं सन् 1873 के करीब
बिछने लगी थी।
यहॉं से पहली
सवारी गाड़ी 15 मई,
1878 को ब्यावर के लिए
रवाना हुई। छुक
छुक करती सिटी
बजाती इस रेल
गाड़ी का नजारा
स्टेशन पर दर्शनीय
था। एक अजब
कौतूहल! बताते है कि
एक अच्छा खासा
मजमा लग गया
था। यहीं से
मेरे विस्तार की
कहानी भी शुरू
होती है, जो
धीरे धीरे बढ़ती
ही गई। रेल
के आगमन पर
मेरे यहॉं की
जनसंख्या में गजब
की वृद्धि हुई
तथा यहॉं के
धार्मिक व पर्यटन
स्थलों पर लोगों
का आवागमन बढ़ा।
आमान परिवर्तन और प्रगति
रेल्वे ओवर ब्रिज -
रेल समस्याऐं व मांगे -
14
फरवरी, 1876 को मैं
नसीराबाद से जुड़ा।
फिर ब्यावर ट्रैक
को अहमदाबाद तक
बढ़ा दिया गया।
सन् 1876 में यहॉं
रेल्वे लोको वर्कशॉप
की स्थापना हुई।
इसके बाद कैरिज
वर्कशॉप भी यहीं
आ गया। 1 दिसम्बर,
1881 को अजमेर-खण्डवा को
एक ब्रांच लाइन
से जोड़ा गया।
मालवा ट्रैक से
जुड़ने पर इसको
‘राजपूताना स्टेट रेल्वे’ से
‘राजपूताना मालवा रेल्वे’ पुकारा
जाने लगा। सन्
1890 के करीब इसका
नाम ‘बाम्बे-बड़ौदा
एण्ड सैंट्रल रेल्वे’
(बीबीएण्डसीआई) कर दिया
गया।
मार्च, 1881 को यहॉं
राजपूताना मालवा रेल्वे मुख्यालय
भवन का शिलान्यास
हुआ। यह भवन
आजकल डीआरएम कार्यालय
के नाम से
जाना जाता है।
शिलान्यास राजपूताना के ब्रिटिश
गवर्नर जनरल ऐजेंट
कर्नल ई.आर.सी.ब्रेडफोर्ड
ने किया। मुख्य
इमारत का काम
सन् 1884 में पूर्ण
हुआ। यह बॉम्बे
बड़ौदा एण्ड सेन्ट्रल
इंडिया रेल्वे का मुख्यालय
भी रहा। यह
इमारत निओ गौथिक
वास्तु शैली का
अद्भुत नमूना है। इसके
परिसर में 1912 का
बना स्टीम इंजन
574 डब्ल्यू स्टीम लोकोमोटिव इंजन’
रखा है। पश्चिमी
जोन का अजमेर
मंडल 15 अगस्त, 1956 को अस्तित्व
में आया। इसका
उद्घाटन अजमेर राज्य के
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय
ने किया।
सन् 1890 में ब्यावर
रोड़ पर रेल्वे
हॉस्पिटल बना। इसी
साल रेल्वे के
अंग्रेज अफ्सरों के मनोरंजन
के लिए सीनियर
रेल्वे इंस्टीट्यूट की स्थापना
भी हुई। सन्
1909 में रेल्वे बिसेट इंस्टीट्यूट
की स्थापना हुई।
सन् 1903 में रेल्वे
कैरिज वर्कशॉप में
स्टील फाउण्डरी खोली
गई। यह देश
की पहली फाउण्डरी
थी, जहॉं कास्ट
स्टील का उत्पादन
हुआ। रेल्वे कर्मचारियों
की सुविधा के
लिए रोडवेज बस
स्टेंड के पास
सन् 1912 में एक
बैंक स्थापित किया
गया। इसे ‘द
जैक्सन को-ऑपरेटिव
क्रेडिट सोसायटी ऑफ द
एम्पलाइज ऑफ वेस्टर्न
रेल्वे’ नाम दिया
गया। यह आज
‘बॉम्बे बैंक’ के नाम
से लोकप्रिय है।
रेल्वे कर्मचारियों के लिए
एक ‘जयपुर बैंक’
भी है। सन्
1922 यहॉं रेल्वे की टिकट
पिं्रंटिंग प्रेस की स्थापना
हुई। सन् 1948 में
अजमेर रेल मंडल
में स्टाउट गाइड
की स्थापना के
साथ ही लोको
कारखाना के सामने
रेल्वे भारत स्काउट
गाइड होम की
स्थापना की गई।
सन् 1956 में यहॉं
पश्चिम और संेट्रल
रेल्वे के यांत्रिकी
और विद्युत सुपरवाइजर्स
को प्रशिक्षण देने
के लिए डीआरएम
दफ्तर के पास
सिस्टम टेक्निकल स्कूल की
स्थापना की गई।
यहॉं अब पश्चिमी
रेल्वे एवं उत्तर
पश्चिमी रेल्वे के यांत्रिकी
और विद्युत सुपरवाइजर्स
को प्रशिक्षण दिया
जाता है।
मेरी भूमि
पर कभी यहॉं
एक ‘ट्राम्बे स्टेशन’
भी था। सुनने
में अटपटा, किंतु
यह नवाब का
बेड़ा के ऊपर
था। सिर
पर मैला ढोने
की प्रथा तक
यह चलता रहा,
किंतु समय के
साथ मैला ढोने
की प्रथा का
अंत हुआ तो
यह स्टेशन भी
खत्म हो गया।
बताते है कि
यहॉं से पटरियों
पर मैले की
गाड़ियॉं चलती थी।
खैर, अब सब
कुछ बदला बदला
सुधरा सुधरा रूप
है।
सन् 1965 के करीब
नगरा पर रेल्वे
के अग्निशमन केंद्र
की स्थापना की
गई, जहां दो
दमकल वाहन थे।
आरपीएफ के अंतर्गत
संचालित इस अग्निशमन
केंद्र को सन्
1997 में बंद कर
दिया गया। रोड़वेज
बस स्टेंड के
पास सन् 1988 में
रेल्वे भर्ती बोर्ड की
स्थापना हुई। इस
बिल्डिंग का उद्घाटन
सन् 1988 में लेफ्टिनेंट
कर्नल एमएल खन्ना
ने किया। यानी
एक के बाद
एक रेल्वे की
अनेक चीजें मुझ
से जुड़ती गई,
वक्त के साथ
बदलती गई और
मेरी रेल कहानी
को विस्तार मिलता
गया। मेरी रेल
कहानी के अनेक
पहलू है, जिस
पर फिर बात
करूंगा।
आमान परिवर्तन और प्रगति
फिलहाल मेरे बढ़ते
कदम में, मैं
सन् 1995 में ब्रॉड
गेज से जुड़ा,
जिस पर पहली
ट्रेन दिल्ली-जयपुर
शताब्दी एक्सप्रेस चली। 20 मई,
1995 को इसे अजमेर
तक बढ़ा दिया
गया। 3 मई, 1997 को मेरा
अहमदाबाद रूट और
फिर जुलाई, 2007 में
मेरा चित्तौड़ रूट
भी ब्रॉड गेज
से जुड़ गया।
परिणामतः इसी दौर
में मैंने मीटर
गेज को पूर्णतः
अलविदा कह दिया।
14 नवम्बर, 2006 को चितौड़
- रेवाड़ी चेतक एक्सप्रेस
मीटर गेज पर
अजमेर की आखरी
ट्रेन थी। 05 जुलाई,
2007 को रेल मंत्री
लालू प्रसाद यादव
ने अजमेर-चितौड़गढ
आमान परिवर्तित रेल
खण्ड का उद्घाटन
व अजमेर- उदयपुर
सिटी एक्सप्रेस का
शुभारम्भ किया। इस प्रकार
जुलाई, 2007 में उत्तर
पश्चिम रेल्वे का अजमेर
मंडल ब्रॉडगेज मंडल
में तब्दील हो
गया।
देश भर
में होती तरक्की
के चलते मालगाड़ियों
के लिए दादरी
गाजियाबाद से जवाहरलाल
नेहरू पोर्ट ट्रस्ट
नवी मुंबई तक
डबल रेल लाइन
-डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का
कार्य 30 अगस्त, 2013 से प्रगति
पर है। मुझे
खुशी है कि
मैं भी इस
रूट का हिस्सा
हूं। अजमेर व
किशनगढ़ के निकट
इसमें दो स्टेशन
बनने है। पुलियाऐं
भी बनेगी। लाडपुरा
रेल्वे स्टेशन के पास
कास्टिंग यार्ड भी
बनाया गया है।
इसके अलावा भी
इससे रोजगार, आर्थिक
लाभ जैसे फायदे
होंगे सो अलग
है। अजमेर-पालनपुर
के बीच रेल्वे
ट्रेक के दोहरीकरण
कार्य भी सन्
2009 से प्रगति पर है।
निश्चय ही यह
प्रगति फायदेमंद रहेगी।
रेल्वे ओवर ब्रिज -
रेल्वे के विकास
के साथ साथ
मेरे यहॉं रेल्वे
ओवर ब्रिज की
जरूरत भी बढ़ती
गई। पहले शहर
में नाम मात्र
का एक ब्रिज
- मार्टिंण्डल ब्रिज था। यह
करीब सवा सौ
साल पुराना है।
इसका निर्माण अंग्रेज
अफसर मार्टिन की
देखरेख में हुआ।
मार्टिन की दूरदृष्टि
के कारण ही
यह ब्रिज करीब
एक सदी तक
शहर की आबादी
को आराम से
झेलता रहा। ब्रॉडगेज
के आगमन पर
इसकी ऊॅंचाई बढ़ाई
गई तथा एक
भुजा ब्यावर की
तरफ निकाली गई।
यह कार्य जून,
2005 में पूर्ण हुआ, जिस
पर करीब सवा
दो करोड़ रूपये
खर्च हुऐ। यह
योजना एशियन विकास
बैंक मनीला से
पोषित थी। शहर
की बढ़ती आबादी
और बढ़ते रेल
यातायात के साथ
और ब्रिज की
मांग बढ़ती गई।
परिणामतः सी.आर.पी.एफ.
रेल्वे ओवर ब्रिज
बना। इसका निर्माण
8 अक्टूबर, 2003 को शुरू
हुआ। यह एशियन
विकास बैंक से
पोषित है। इसकी
लागत करीब 14 करोड़
रही। इसका लोकार्पण
राजस्थान की मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे ने
30 अप्रेल 2007 को किया।
सराधना ओवर ब्रिज
का काम जुलाई,
2007 में शुरू हुआ।
पूर्ण होने पर
इसका लोकार्पण 5 मई,
2012 को तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री
सचिन पायलट ने
किया। 635 मीटर लम्बे
इस पुल पर
करीब 10 करोड़ रूपये
खर्च हुऐ।
इसी
दौरान मेरे यहॉं
रेल्वे स्टेशन के बाहर
मुख्य सड़क पर
फुट ओवर ब्रिज
बना। इस ब्रिज
का लोकार्पण 14 जून,
2010 को केन्द्रीय संचार राज्य
मंत्री सचिन पायलट
ने किया। इसका
निर्माण जवाहरलाल नेहरू शहरी
नवीनीकरण मिशन के
तहत लोक निर्माण
विभाग ने किया।
इस पर करीब
83 लाख खर्च हुऐ।
यह ब्रिज प्लेटफार्म
से नहीं जुड़ा
होने के कारण
इसका उपयोग पूरा
नहीं हो पा
रहा है। अतः
यहॉं इसकी खामियों
को दूर करना
होगा। नसीराबाद रोड़
स्थित आड़ी पुलिया
के पुराने गर्डर
भी क्षतिग्रस्त होने
के कारण इन्हें
भी 2 जुलाई, 2015 को
बदला गया।
ब्रिज बनने के
इस दौर में
एक ब्रिज नाका
मदार -श्रीनगर रोड़
पर सितम्बर, 2012 से
निर्माणाधिन है। इसकी
कुल लागत करीब
43 करोड़ है। यह
कार्य वर्ष 2014 में
पूर्ण होना था।
अब इसकी नई
डेड लाइन जून,
2016 है। कार्य प्रगति पर
है तथा उम्मीद
है अब यह
अपनी निर्धारित तिथि
तक पूर्ण हो
जाऐगा। रेल्वे के विस्तार
के साथ साथ
मेरी शक्ल सूरत
में इन ब्रिजों
से बदलाव आऐ,
पर लोगों की
सुविधाऐं बढ़ी।
रेल समस्याऐं व मांगे -
गत दशकों
में कुछ ब्रिज
बने है, किंतु
मेरी बढ़ती आबादी,
वाहन और बढ़ती
रेल सेवा के
चलते बहुत सी
जगह अभी और
रेल्वे ओवर ब्रिज
की मांग है।
सुभाष नगर व
दुग्ध डेयरी के
पास रेल्वे आवर
ब्रिज के लिए
वर्ष 2013 के बजट
में घोषणा की
थी, किंतु यह
आज तक लम्बित
है। गुलाब बाड़ी
फाटक, आदर्श नगर,
लाल फाटक, तोपदड़ा
पुलिया पर भी
रेल्वे ओवर ब्रिज
की बरसों पुरानी
मांग है। सैद्धांतिक
रूप पर कुछ
जगह तो सरकार
सहमत भी है।
स्वीकृति भी दी
है, किंतु बजट
अभी भी स्वीकृत
नहीं किया है।
गुलाब बाड़ी फाटक
पर पुल बजट
की राह तक
रहा है। देखते
है कि इन
मुद्दों पर कब
कुछ कारगर कदम
उठता है।
रेल द्वारा
तीर्थराज पुष्कर से जुड़ना
भी मेरा एक
पुराना सपना था,
जो 23 जनवरी, 2012 को
पूर्ण हुआ, जब
यहां छुकछुक की
सिटी बोली। यह
ट्रैक मात्र 25.7 किलोमीटर
का है। इस
पर करीब 100 करोड़
रूपये से भी
अधिक राशि खर्च
हुई। पुष्कर से
जुड़ना मेरा सौभाग्य
है, किंतु अभी
इस रेल मार्ग
का पूरा उपयोग
नहीं हो पा
रहा है। यात्रियों
के अभाव में
रेल्वे स्वयं भी घाटे
में है। इसमें
सुधार के लिए
इस ट्रैक को
आगे मेड़ता तक
जोड़ना जरूरी हो
गया है। पुष्कर
ट्रैक बनने के
बाद मेरी निगाहें
हर बार रेल
बजट पर रहती
है, किंतु अभी
तक तो रेल
मंत्रीजी कि नजरें
इनायत नहीं हुई
है।
मेरे यहॉं
रेल्वे का लम्बा
चौड़ा फैलाव है।
अनेक समस्याऐं है।
रेलों की बहुत
सी जगह ठहराव
की समस्या है
तो कई पुलिया
और फाटक बनाने
की है। कहीं
इसे आगे जोड़ने
की बात है
तो कहीं सुख-सुविधाऐं बढ़ाने की
बात है। कहीं
नई ट्रेनें चलाने
की है तो
कहीं रेल्वे की
बेकार पड़ी सम्पत्ति
के सही उपयोग
की। यहॉं बने
रेल्वे क्वाटरों की बात
करें तो मेरे
उत्तरी हिस्से में करीब
1010 क्वाटर और 100 बंगले है।
इसी प्रकार दक्षिणी
हिस्से में करीब
1062 क्वाटर और 116 बंगलें है,
किंतु बहुत से
खाली, विरान पड़े
है या खण्डहर
में तब्दील हो
रहे है। अतः
इनके बारे में
सोचना चाहिऐ तथा
बेकार पड़ी जमीं
के लिए प्रशासन
व रेल्वे को
मिल कर मेरे
हित में निर्णय
लेना चाहिऐ।
सब स्टेशनों
में मदार, आदर्शनगर,
दौराई आदि को
भी विकसित करना
चाहिऐ। पालबिचला - तोपदड़ा की
तरफ भी द्वितीय
निकास करना चाहिऐ
ताकि शहर पर
हर तरह का
दबाव कम हो
सके। रोज रोज
के लगते जाम
के कारण इस
कार्य को प्राथमिकता
दी जानी चाहिऐ।
स्टेशन
यहॉं के
स्टेशन से तीन
लाइनें गुजरती है। एक
दिल्ली के लिए
दूसरी अहमदाबाद तथा
तीसरी उदयपुर के
लिए। इसी कारण
मेरे यहॉं का
स्टेशन जंक्शन है। स्टेशन
की इमारत का
प्रथम तल सन्
1885 में तैयार हुआ। यह
समुद्र तल से
464 मीटर की ऊॅचाई
पर स्थित है।
यहॉं 5 प्लेटफार्म है। यहॉं
करीब 73 ट्रेनों का ठहराव
है। 31 ट्रेने यहॉं से
रवाना होती है
इतनी ही ट्रेने
यहॉं टर्मिनेट होती
है। अर्थात् यहां
करीब 110 गाड़ियों का आवागमन
होता है। यात्री
भार देखे तो
प्रतिदिन करीब 3 हजार लोगों
का प्रस्थान रहता
है तथा करीब
एक हजार लोगों
का आगमन रहता
है।
अब स्टेशन
का तीसरा प्रवेश
द्वार गांधी भवन
चौराहे के निकट
निर्माणाधिन है। इसका
कार्य जून, 2015 से
प्रगति पर है।
इसमें श्री सीमेंट
सहयोगी है। यहॉं
पार्किंग, आरक्षण काउंटर, एयरकुल्ड
वेटिंग हॉल आदि
की सुविधाऐं रहेगी।
विश्व स्तरीय स्टेशन
का जो सपना
कुछ वर्षो पूर्व
दिखाया था, उम्मीद
है यह उसी
दिशा में एक
कदम साबित होगा।
जून 2015 में एटीवीएम
(ऑटोमेटिक टिकट वैंडिंग
मशन) लगी। एस्केलटर्स
भी लगा है।
18 नवम्बर, 2015 को यहॉं
आपात स्थिति से
निपटने के लिए
मॉकड्रिल भी किया
गया, जिसमें एनडीआरएफ
की 40 सदस्ययी टीम
ने मुस्तैदी से
हालात को संभाला।
विकास पथ पर
बढ़ते हुऐ उम्मीद
है शीघ्र ही
और एस्केलेटर्स, इलेक्ट्रोनिक
चार्ट, एलइडी ट्रेन इंडिकेटर
बोर्ड, एलइडी ट्रेन टाइम
टेबल, लिफ्ट, एवन
वेटिंग रूम, ट्रेवलर्स,
हेलीपैड, सोलार एनर्जी बेस्ड
स्टेशन आदि से
भी मेरा स्टेशन
सुसज्जित होगा। डीआरएम नरेश
सालेचा इस ओर
सक्रिय व सकारात्मक
है। उनकी सूझबूझ
से हाल ही
में अजमेर मंडल
को भारतीय रेल्वे
की आय-व्यय
खातों को तैयार
करने संबंधि पायलट
प्रोजेक्ट मिला, जिसमें वे
कामयाब रहे। उर्जा
संरक्षण- 2015 में भी
मेरे यहॉ का
डीआरएम कार्यालय राज्य में
प्रथम रहा। सालेचा
साहब को मेरी
हार्दिक बधाई और
शुभकामनाऐं कि वे
मेरी रेल कहानी
को इसी प्रकार
और आगे बढ़ाऐं
व नई ऊॅंचाईयॉं
दें।
(अनिल
कुमार जैन)
‘अपना
घर’, 30-अ,
सर्वोदय
कॉलोनी, पुलिस लाइन,
अजमेर
(राज.) - 305001
Mobile - 09829215242
aniljaincbse@gmail.com
anil_art4u@yahoo.com
anil_art4u@yahoo.com
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