Wednesday 2 December 2015

ज्ञानोदय जैन तीर्थ क्षेत्र, नारेली

सुधा सिंघु आशीष ने, जग को दी सौगात
ज्ञानोदय के नाम से, हुआ तीर्थ विख्यात।।
      अजमेर से 10 किमी दूर नारेली गॉंव के निकट बना यह नवोदित दिगम्बर जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र है। यह किशनगढ़-ब्यावर बाईपास के बीच नेशनल हाइवे 8 पर स्थित है। किशनगढ़ से यहॉं की दूरी करीब 25 किमी है। 
                इसकी स्थापना 30 जून, 1995 में मुनि श्री 108 सुधासागरजी की प्रेरणा से की गई थी। यह तीर्थ क्षेत्र तेरापंथी आम्नाय का है। क्षेत्र की स्थापना के बारे में श्री भीकमचन्द जी पाटनी अपने एक लेख  में लिखते है कि दिगम्बराचार्य संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि श्री सुधा सागरजी महाराज जब सन् 1994 में सेठ साहब की नसियॉं में चातुर्मास कर रहे थे तब  कार्तिक सुदी पुर्णिमा की रात को अंतिम प्रहर में स्वप्न में उन्हें अजमेर की पूर्व दिशा में एक पहाड़ी भूखण्ड के दर्शन हुए। सवेरे मुनि श्री ने समाज के लोगों से इस बात की चर्चा की और कहा कि पूर्व दिशा की तरफ चलो, इसी दिशा में तीर्थ क्षेत्र बनेगा। इस पर समाज के कुछ लोग, मुनिश्री एवं गंभीर सागरजी महाराज पूर्व दिशा की ओर चल पड़े। रास्ते में मदार क्षेत्र की पहाड़ियों का निरीक्षण किया गया। इस दौरान श्रीनगर- बड़लिया चौराहे के पास महाराजश्री उत्तर दिशा की तरफ मुड़ गऐ और नारेली की इस विशाल पहाड़ी पर ऑंखे ठहर गई। महाराज श्री ने यहॉं कुछ देर ऑंखे बंद की और ध्यानमग्न हो गये। ध्यान पश्चात् महाराजश्री ने घोषणा की कि इसी स्थान पर तीर्थ क्षेत्र बनेगा। कहते है ना किजहां-जहॉं पैर पड़े संतन के वहॉं-वहॉं तीरथ होय महाराज श्री के चरण यहॉं क्या पड़े की यह भूमि तीर्थ बन गई।
                तत्पश्चात् समाज के गणमान्य व्यक्ति - श्री भागचंदजी गदिया, श्री माणकचंदजी सोगानी, श्री राजेन्द्रजी ढिलवारी, श्री राजेन्द्रजी दनगसिया, श्री ज्ञानचंदजी दनगसिया, श्री राजेन्द्रजी जैन सीमेंट वाले आने भूमि आवंटन के लिए सक्रिय हो गऐ। यूआईटी से जमीन पहाड़ी भूभाग रियायती दर पर आंवटित करवाया गया। पहाड़ी के नीचे का कुछ मैदानी भाग श्री राजेन्द्रकुमारजी दनगसिया परिवार के नाम खरीदकर क्षेत्र को दान किया गया। श्री भागचंदजी गदिया की अध्यक्षता  में एक ग्यारह सदस्यीय एक समिति बनायी गई। इसके पश्चात् क्षेत्र की स्थापना 30 जून, 1995 को की गई। नाम रखा गया - श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र, ज्ञानोदय नगर, नारेली। महाकवि आचार्य 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण हुआ। श्री ज्ञानसागरजी महाराज मुनिपुंगव श्री 108 सुधासागरजी महाराज के दादा गुरू है। ज्ञानसारगजी की समाधि नीकटवर्ती कस्बा नसीराबाद (अजमेर) में है। संत शिरोमणी परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागरजी की दीक्षा स्थली भी अजमेर ही है। दोनों महा आदर्श संतों की यशोगाथा को चिर स्थायी बनाने के लिए भी इस प्रकार के क्षेत्र की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। परिणामतः ज्ञानोदय तीर्थ के नाम से यह तीर्थ बन गया। जंगल में मंगल हो गया।
      वर्ष 1997 में सुधासागरजी महाराज का प्रथम चातुर्मास इसी क्षेत्र पर हुआ। उनके पावन सानिध्य में यहॉं इस वर्ष कई योजनाऐं आरम्भ की गई विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास किऐ गऐ। प्रकृति के सानिध्य में बनी यह बहुउद्देशीय क्षेत्र करीब 127.5 बीघा भूमि पर फैला है। पहाड़ी की ऊॅंचाई करीब 150 मीटर है, जहॉं तक करीब ढाई किमी लम्बी पक्की सड़क राज्य सरकार ने बनवाई है। इतने बड़े विशाल भू-भाग में कई योजनाऐं मंदिर बने है। सबका अपना-अपना महत्व है। सबका का एक इतिहास है। क्षेत्र पर हर निर्माण अपनी ऑंखों के सामने हुआ, इसीलिए इसके हर निर्माण की कहानी भी मौजूद है। यहॉं सभी महत्वपूर्ण निर्माणों का विवरण अलग अलग दिया गया है।
सिंहद्वार -
      लाल पत्थरों से बना यह द्वार नाम के अनुरूप ही विशाल भव्य है। इसकी ऊॅंचाई 51 फीट है। इसके दोनों तरफ सुरक्षा कर्मियों के लिए 2 मंजिलें कमरें भी बने है। इसका उद्घाटन 16 सितम्बर, 2000 क्षेत्र के प्रेणता मुनिश्री सुधासागर जी महाराज के पावन सानिध्य में जैन गौरव दानवीर श्रेष्ठी श्री रतनलाल जी कंवरीलाल जी पाटनी .के.मार्बल्स परिवार किशनगढ़ के करकमलों द्वारा सुसम्पन्न हुआ। इस द्वार से क्षेत्र के प्रमुख मंदिर आदिनाथ जिनालय में स्थापित विशाल भव्य मनोहारी आदिनाथ की प्रतिमा के दर्शन होते है। यहॉं से क्षेत्र का विहंगम दृश्य बड़ा ही प्यारा लगता है। 
आदिनाथ जिनालय -
      तलहटी में अक्षरधाम की तर्ज पर एक भव्यआदिनाथ जिनालयबना है। पहाड़ की पृष्ठभूमि और हरीभरी वादियों में यह एक अनुपम कृृति है। इसे अजमेर की शान कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। लाल पत्थरों से बना यह मंदिर जितना विशाल है, उतना ही भव्य कलात्मक भी है। फव्वारें, गार्डन, धर्म आधारित कलात्मक आकृतियॉं आदि से इसकी सुंदरता में चार चॉंद लग गऐ है।
      इसमें भूतल पर वृत्ताकार आकृति मेंज्ञानसागर सभागारहै। इसके चारों तरफ दरवाजे है। यह खुला-खुला और हवादार है। बीच में शानदार स्टेज है।
      दूसरी मंजिल पर विशाल जिनालय है। हालनुमा इस मंदिर में  लालपत्थर से बनी विशालकाय मूर्ति स्थापित है। लाल पत्थरों के कमलासन पर मूर्ति पद्मासन में विराजमान है। प्रतिमा एक ही पत्थर से बनी है, जिसकी ऊॅंचाई 21 फीट एवं वजन करीब 40 मेट्रिक टन है।
      इस मंदिर का शिलान्यास मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य में 11 अगस्त, 1997 को श्रेष्ठी श्री रतनलालजी, कंवरलाल जी, युवारत्न अशोक कुमारजी, सुरेश कुमारजी एवं विमलकुमारजी पाटनी, आर.के.मार्बल्स लि., किशनगढ़ ने किया। पाटनी परिवार द्वारा बनाया गया यह मंदिर अपनी विशालता, सौंदर्यता और भव्यता में अद्वितीय है। रात के समय जब कृत्रिम बल्बों की रोशनी में मंदिर नहाता है तो मंदिर की सुंदरता देखने लायक होती है।
      इस मंदिर का मॉडल धर्मशाला के बरामदे में कॉंच की फ्रेम में दर्शाया गया है। मॉडल का निर्माण अनुकृति आर्ट, अहमदाबाद ने करीब 1.5 लाख रूपयों में किया है। इसकी स्थापना नारेली में 2004 में होली के मौके पर की गई थी।
त्रिकाल चौबीसी मंदिर -
      त्रिकाल चौबीसी के 24 मंदिर पहाड़ी पर बने है। लाल पत्थरों से बने ये कलात्मक मंदिर मूल रूप से एक जैसे है, किंतु सभी का शिल्प करविंग कार्य अलग-अलग है। इन सभी मंदिरो का निर्माण अलग-अलग पुण्यार्जकों द्वारा सम्पन्न करवाया गया है। इनमें त्रिकाल चौबीसी  विराजमान की जा रही है। इन मंदिरों में कुल 72 मूर्तियॉं स्थापित की जाऐगी, जिसमें भरत क्षेत्र के भूत, भविष्य और वर्तमान के 24-24 तीर्थंकर अर्थातचौबीसीरहेगी। प्रतिमाओं की ऊॅंचाई 5.6 फीट रखी गई है। सहस्रकूट की तरफ इसके प्रथम जिनालय (ध्यान केन्द्र) का शिलान्यास 27 दिसम्बर, 1997 को महतिया परिवार द्वारा किया गया।
श्री नन्दीश्वर जिनालय
      यह तलहटी पर पहाड़ की चढ़ाई आरम्भ होने के साथ ही मोड़ पर स्थित है। शास्त्रों के अनुसार यह जम्बूद्वीप के आठवे स्थान पर स्थित है, जहॉं मनुष्यों का जाना सम्भव नहीं है। इसीलिए नन्दीश्वर द्वीप के 52 जिनालयों की स्थापना  निक्षेप से इस क्षेत्र पर की है, ताकि भव्य संसारी जीवों को इसके दर्शन लाभ मिल सके।
समवशरण जिनालय
                समवशरण यानी भगवान की सभा। इसका पुण्यार्जन श्रेष्ठी श्री पूरनचंदजी पटना वाले को मिला। सन् 2008 से इसका कार्य आरम्भ है।  
सहस्त्रफणी पार्श्वनाथ जिनालय -
                यह मनोहारी जिनालय पहाड़ की पृष्ठभूमि में बना है। यह पहाड़ की चढ़ाई आरम्भ होने पर कुछ सीढ़ियॉं चढ़ने पर स्थित है। मंदिर का शिलान्यास 19 अगस्त, 2000 को हुआ तथा लाल पाषाण की पद्मासन 1008 फणों वाली प्रतिमा 12 जनवरी, 2003 को विराजमान की गई। मंदिर का निर्माण श्रेष्ठी श्री त्रिलोकचंद जी महेन्द्र कुमार जी गदिया अजमेर के पुर्ण्याजत्व में सम्पन्न हुआ।
सहस्त्रकूट जिनालय -
                अरिहंत तीर्थंकरों के शरीर में 1008 सुलक्षण होते हैं। इसीलिए तीर्थंकरों को 1008 नामों से पुकारते है। इस एक-एक नाम के लिए एक एक वास्तुकला में विराजमान कर 1008 जिनबिम्ब एक स्थान पर विराजमान किए जाते है। इसीलिए इसे सहस्त्रकूट  जिनालय कहा जाता है। सीढ़ियों वाले रास्ते पर पार्श्वनाथ जिनालय के बाद पहाड़ी के कूट पर यह स्थित है। इसका शिलान्यास 31 जनवरी, 1998 को मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य में हुआ। षट्कोणीय आकृति में बने इस जिनालय में 1008 प्रतिमाऐं स्थापित की जाऐंगी, जो कि आरक्षित हो चुकी है। बीच में चार प्रतिमाऐं रहेंगी। चैत्यवृक्ष पर 24 जिनालय होंगे। इसमें समाज को सामूहिक रूप से मूर्तियॉं विराजमान करने का सौभाग्य मिला है। इस मंदिर का निर्माण कार्य श्रेष्ठी श्री कुन्तीलालजी रमेशचंद नरेशचंद गदिया नसीराबाद तथा श्री सौभागमलजी राजेन्द्रकुमारजी कटारिया अहमदाबाद के पुर्ण्याजन से सम्पन्न हो रहा है।
त्रिमूर्ति जिनालय
      पहाड़ी पर बना यह मूलनायक जिनालय है। लाल पाषाणों से बने इस जिनालय को छैनी हथोड़ी से शानदार कलात्मकता प्रदान की गई है। जिनालय में अष्ठधातु की 11-11 फीट उतुंग तीर्थंकर, चक्रवर्ती, कामदेव जैसे महापुण्य पदों को एक साथ प्राप्त करने वाले श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ भगवान की खड्गासन मूर्तियॉं स्थापित है। इन तीनों का वजन 24 हजार किलोग्राम है, जो कि गिनीज बुक में नाम दर्ज करने की क्षमता रखती है। इन मूर्तियॉं की ढलाई मुजफ्रनगर में सम्पन्न हुई। पहाड़ पर इन प्रतिमाओं को 27 अगस्त, 2000 को स्थापित किया गया। मंदिर का शिलान्यास मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य में दिगम्बर जैन श्रेष्ठी श्री दीनानाथ जी ढिलवारी परिवार, अजमेर ने 3 दिसम्बर, 1997 को किया। मंदिर का निर्माण वंशी पहाड़ के लाल पत्थरो से सोमपुराओं द्वारा किया जा रहा है।
मानस्तम्भ -
      यह पहाड़ पर त्रिमूर्ति जिनालय के समीप बना है। लाल पत्थरों के मंदिरों के बीच सफेद संगमरमर की यह कृति स्वर्गलोक की राजसभा सी लगती है। इसके चारों तरफ सुंदर तोरणद्वार बने है। बीच में मानस्तम्भ के ऊपर कल्पवृक्ष स्थापित है। शास्त्रों के अनुसार समवशरण के चारों दिशाओं में मानस्तभ  की स्थापना की जाती है, ताकि इसे देखकर मिथ्यादृष्टियों का मद (अहंकार) गल जाऐ और वह भव्य जीव सम्यग्दृष्टि होकर साक्षात अरिहंत भगवान की वाणी सुनने का अधिकारी बन जाऐ। इसीलिए तीर्थ क्षेत्रों मंदिरों में मानस्तम्भ की स्थापना की जाती है। नारेली क्षेत्र पर इसे श्रेष्ठी श्री अभयकुमारजी, अतुल कुमारजी ढिलवारी परिवार, अजमेर द्वारा बनवाया गया है। 
श्री शीतलनाथ चैत्यालय -
      यह पहाड़ पर त्रिमूर्ति जिनालय के बाद स्थित है। पहाड़ पर स्थित इस जिनालय में शीतलनाथ भगवान के अलावा आदिनाथ एवं भगवान महावीर की मूर्तियॉं भी स्थापित है। अष्ठधातू की ये तीनों प्रतिमाऐं पद्मासन है। जिनालय में पूजा-अभिषेक चालू है। यहॉं प्रतिमाऐं 8 फरवरी, 2001 को विराजमान की गई।
      म्ंदिर-हॉल का शिलान्यास 27 सितम्बर, 2004 को हुआ। इसका निर्माण श्रेष्ठि श्री इन्द्रचंदजी सा. गोधा द्वारा करवाया गया। इसमें संगमरमर की वेदी श्रेष्ठि श्री प्रेमचंदजी निर्मलकुमार जी गंगवाल ने भेंट की।
कैलाश पर्वत -
      सहस्त्रकूट जिनालय के ठीक विपरित पहाड़ के दूसरे छोर पर यह बनाया गया है। इसका निर्माण गुप्त दातार ने करवाया।
नाभिस्थल (शंकु) - 
      क्षेत्र को उर्जावान बनाऐ रखने के लिए क्षेत्र के बीचोंबीच एक नाभि स्थल विकसित किया गया है। जिस प्रकार शरीर में नाभि का काम होता है, उसी प्रकार यह नाभिस्थल क्षेत्र को संभालने का कार्य करेगा। क्षेत्र को उर्जा और संस्कार देने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इसीलिए यहॉं विभिन्न तीर्थक्षेत्रों अतिशय क्षेत्रों की पवित्र रज (मिट्टी) बहुमूल्य धातुओं को 1008 रजत-स्वर्ण कलशों में भरकर मंत्रोंच्चारण महायंत्रों के साथ स्थापित किया गया। इसकी स्थापना 22 फरवरी, 1998 को मुनि श्रीसुधासागरजी के सानिध्य में हुई। इसका निर्माण भी कलात्मक है। षट्कोणीय आकृति में यह तीमंजिला है।
संतशाला -
                यह पहाड़ी की तलहटी में आदिनाथ जिनालय और गौशाला के बीच बनी है। साधु-संतों के धर्म-ध्यान और साधनानुकूल इस संतशाला का निर्माण हुआ है। इसका शिलान्यास मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य में 18 अगस्त, 1997 को हुआ। वर्ष 2000 में मुनिश्री सुधासागरजी महाराज का ससंघ चातुर्मास इस संतशाला में हो चुका है।
गौशाला -
      यहॉं एक गौशाला भी है। गौशाला का उद्घाटन मुनिश्री सुधासागरजी के सानिध्य में 10 दिसम्बर, 1995 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैंरोंसिह शेखावत ने 11 गायों से किया। अब इसमें करीब 400 गायें है। पहले यहॉं बगीचे में एक खरगोश शाला भी थी, जिसमें करीब 300 खरगोश हो गऐ थे। गौशाला में दान के लिए क्षेत्र कमेटी ने बैंक ऑफ राजस्थान प्रा. लि. में खाता खुलवा रखा है जिसका खाता संख्या - 0330101428941 है।
भाग्यशाला - ‘औषधालय
      यह शॉपिंग सेंटर भोजनशाला के निकट बना है। इसका शिलान्यास मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य में 1 मार्च, 1998 को हुआ। इसके पुण्यार्जक श्रेष्ठी श्री धर्मेशकुमार जी नीतिन कुमारजी जैन बजाज, अजमेर रहे। 
धर्मशाला -
      क्षेत्र पर ठहरने की समुचित व्यवस्था है। प्रथम धर्मशाला साधारण, द्वितीय डिलक्स तथा तृतीय एसी धर्मशाला यानी सभी तरह की सुविधाऐं उपलब्ध है। इनमें गद्दे-रजाई आदि की समुचित व्यवस्था है। वातानुकूलित विश्राम गृह का शिलान्याव भूमि पूजन 2 दिसम्बर, 2004 को हुआ।
कार्यालय भवन (चैत्यालय मंदिर) -
      क्षेत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक दो मंजिला भवन का निर्माण किया गया है। जिसका उद्घाटन संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने सन् 2012 में किया। इसका निर्माण श्रेष्ठी श्री सौभागमलजी राजेन्द्रकुमारजी कटारिया, अहमदाबाद द्वारा किया गया है। यहॉं एक रत्नत्रय चैत्यालय भी स्थापित किऐ जाने की योजना है। इसका शिलान्यास भूमि पूजन 2 दिसम्बर, 2001 को किया गया।
वानप्रस्थ आश्रम -
      गृहस्थ जीवन से विरक्त होने पर शुद्ध वातावरण में धर्म-ध्यानपूर्वक साधना कर सके, इस उद्देश्य से क्षेत्र पर इस आश्रम की स्थापना की है। इसका पूण्यार्जन श्रेष्ठी श्रीमती मुन्नी देवी तत्पुत्र श्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी, संजयकुमारजी, नीरजकुमारजी गदिया निवासी सूरत को मिला। इसका शिलान्यास राजन्द्र नाथूलाल जैन मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 2 दिसम्बर, 2004 को किया गया।
वाचनालय -
                                अनौपचारिक रूप से इसका शुभारम्भ 21 जनवरी, 1996 को हुआ।
नन्दनवन योजना
      तीर्थ पर पर्यावरण की रक्षा के लिए नन्दनवन योजना चलाई जा रही है, जिसमें 30 हजार पौधे लगाकर क्षेत्र को हराभरा प्राकृतिक बनाया जा रहा है। श्री निर्मल गंगवाल (गोटा व्यवसायी) इस वन को लगाने में विशेष रूप से सक्रिय है। वे 23 मई, 2009 से यहॉं निरंतर सवेरे करीब 2 घंटे से भी ज्यादा समय प्रतिदिन दे रहे है। इनके इसी अथक प्रयासों से यह क्षेत्र पल्लवित हो उठा है। एसी उत्कृष्ट सेवा के लिए श्री गंगवाल का गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी, 2012) को पटेल मैदान पर पर्यावरण पर्यटन कला मंत्री श्रीमती बीना काक ने सम्मानित किया है।
      यहॉं ठहरने के लिए यहॉं विशाल धर्मशाला एवं खाने-पीने के लिए भोजन शाला आदि सभी है। भोजनशाला के पास ही एक शॉपिंग सेंटर है, जहॉं रोजमर्रा टूरिस्ट के जरूरत की सभी सामग्री उपलब्ध रहती है।
      क्षेत्र पर समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रम होते रहते है। रक्षा-बंधन पर धर्म की रक्षा का धागा बांधा जाता है। होली के मौके पर केसर की होली खेली जाती है। वार्षिक कलशाभिषेक का कार्यक्रम भी बड़ी धुमधाम से होता होता है। कलशाभिषेक के अवसर पर यहॉं आस-पास के क्षेत्रों से पदयात्राऐं आती है। क्षेत्र पर पहली पदयात्रा का सिलसिला 19 अगस्त, 2000 को शुरू हुआ, जब ब्यावर से पहली बार लोग पैदल चलकर यहॉं पहुंचे। वर्ष 2014 की पद यात्रा ऐलाचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज के ससंघ सानिध्य में हुई। वर्ष 2015 में यहॉं 16वीं पदयात्रा दिनांक 11 अक्टूबर, को सम्पन्न हुई।
                3 दिसम्बर, 2014 को यहॉं आचार्य वर्धमान सागरजी महाराज एवं एलाचार्य वसुनन्दीजी महाराज का ससंघ वात्सल्य मिलन हुआ। 3 अक्टूबर, 2015 को यहॉं राष्ट्रसंत मुनि पुलक सागरजी का आगमन हुआ। 4 अक्टूबर, का यहॉं पुलक सागरजी महाराज को जयपुर से नारियल झिलाने के लिए करीब 10 हजार लोग आऐ। बसों की संख्या करीब डेढ़ सौ थी।
      इस क्षेत्र को भव्य रूप देने में एवं पत्थरों पर छैनी हथोडें से बोलती कलाकृति उकेरने में पिंडवाड़ा (सिरोही) के रमजान खान की टीम (गिरासिया समुदाय के कारीगर), खेड़ी (टोडाभीम) करौली जिले के विशंभर दयाल की टीम (कोली, बैरवा जाति के कारीगर), हिंडौन के नवलसिंह उनकी टीम एंव उड़ीसा के कारीगरों का हूनर सिर चढ़ कर बोल रहा है। मजदूर-कारीगर लोग अपना पसीना बहा रहे है तो दूसरी तरफ समाज दान-दातार भी दिल खोल कर क्षेत्र को आर्थिक मदद कर रहे है। यहॉं दान के लिए ऑरियंटल बैंक ऑफ कामर्स में खाता खुलवा रखा है, जिसका खाता संख्या - 01535011000095 है। दान या सहयोग राशि मनीआर्डर, चैक, ड्राफ्ट द्वारादिगम्बर जैन समिति रजि. नारेली, अजमेरके नाम दिया जा सकता है। क्षेत्र में दान पर आयकर विभाग से धारा 80 जी के अंतर्गत छुट प्राप्त है।
      आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज से दीक्षित अचार्यकल्प विवेकसागरजी की शिष्या आर्यिका श्री विज्ञानमती माताजी ने क्षेत्र पर 1 दिसम्बर, 2011 को 4 ब्र. दीदीयों को आर्यिका दीक्षा दी। आर्यिका शरदमति, आर्यिका चरणमति, आर्यिका करणमति आर्यिका शरणमति माताजी के रूप में नामकरण के साथ ही क्षेत्र जयकारों से गूंज उठा।
      ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र की देखरेख दिगम्बर जैन समिति (रजिस्टर्ड) के निर्वाचित पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी द्वारा की जाती है। आरम्भ में क्षेत्र की कमेटी के अध्यक्ष श्री भागचन्दजी गदिया (बीर वाले) थे। वर्तमान में किशनगढ़ के श्री निहालचंद पहाड़िया अध्यक्ष है।
      क्षेत्र के स्थायी उपायों में धुव्र फंड भी बनाया गया है, जो कि क्षेत्र भोजनशाला आदि के संचालन में सहायक रहता है।
      भविष्य में यहॉं सिद्धक्षेत्र, गुफाऐं, 51 फीट की भगवान बाहुबली की प्रतिमा आदि बनाने की योजनाऐं भी है। भगवान बाहुबली की प्रतिमा के लिए घर घर से धातुऐं धनराशि जमा की है, किंतु कार्य श्रम साध्य होने की वजह से अभी समय लेगा।
      यहॉं का पूर्ण पता है - श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, किशनगढ़ ब्यावर बाईपास रोड़, ज्ञानोदय नगर, नारेली - 305024 जिला अजमेर (राजस्थान)  क्षेत्र के बारे में कवि कहता है -
सुनो सुनो एक शुभ संदेशा, एक दिन ऐसा आऐगा
गिरनारी सम्मेद शिखर, ज्ञानोदय बन जाऐगा।।

अनिल कुमार जैन
अपना घर 30
सर्वोदय कॉलोनी पुलिस लाईन
अजमेर

मोबाइल - 9829215242

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